मैं जानती थी कि मुझे आज ऑफीस जाने में काफ़ी देर हो जाएगी, इसलिए मैने उस बुज़ुर्ग औरत को टिकट काउंटर की सीडियों पर बिठा कर टिकट के लाइन मे खड़े होकर, अपने बॉस को फ़ोन लगाया, "सर, आज बारिश की वजह से ट्रेन लेट चल रही है | मुझे आने में देर होगी..."
"कोई बात नही, संध्या | तुम एक काम क्यों नही करती? तुम्हारी छुट्टियाँ तो कल से शुरू हो रही है | आज मौसम भी कुछ ठीक नहीहै... तुम एक काम करो, तुम आज से ही छुट्टी ले लो..."
"लेकिन, सर...", बॉस के मूड का कुछ पता नही, मैने तो सोचा था की वह मेरी हमेशा के लिए छुट्टी कर रहें हैं |
"अरे बाबा, तुम आज से ही छुट्टी लेलो | तुम्हे पाँच दिन की छुट्टी चाहिए था ना; उसकी जगह छह दिन का छक्का मार लो और इस महीने एक दिन सैयटर्डे शिफ्ट कर लेना... बस ख़तम हो हाई बात, छुट्टी ले लो आज से ही..."
बाप रे बाप! जान में जान आई | पता नही आज बॉस इतना मेहेरबान क्यों है?
"अरी बिटिया, किससे बात कर रही थी?"
"जी मैने अपने बॉस को फोन लगाया था... कह रही थी कि आज मुझे आने में देर हो जाएगी..."
"हाँ देर तो होगी ही... उसने तुझे आज छुट्टी दी की नही?"
यहसुन कर मैं बिल्कुल दंग रह गयी, "जी, हाँ दी... लेकिन आपको कैसे मालूम?"
"अरी मेरी काफ़ी उमर हो गयी है, मैने तेरे से ज़्यादा दिनदेखें हैं... आज का मौसम देख... अगर दिन ढलते ढलते मौसम और खराब हो गया तो? कौन ज़िम्मेदारी लेगा कि तू काम के बाद घर पहुँची कि नही?"
बात तो सही है |
फिर वह मुझ से कहने लगी, "बेटी, अगर हो सके तो तू मुझे मेरे घर तक छोड़ दे... मैं कल रात की जगी हुई हूँ... अगर ट्रेन मे ही सो गयी तो ना जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाउंगी"
मैने कुछ देर सोचा उसके बाद मैने तय किया कि आज तक कभी भी मैने गाँव नही देखा था, यह तो एक बेचारी सीधी साधी बुढ़िया है,मेरा क्या बिगड़ेगी... लेकिन आज कल ज़माना बहुत खराब है... पर कहीं यह सीधी औरत असल में टेढ़ी निकली तो? वैसे आज दिन भर घर जाने के बाद सिवाय झक मरने के मैं करूँगी भी क्या? सारे के सारे दोस्त भी आज घर मे ही रहेंगे, आज कहीं प्लान बनाने का सवाल ही नही उठता... मौसम जो इतना खराब है...
"क्या सोच रही है", बिटिया?", उस बुज़ुर्ग औरत ने पूछा |
"जी, माता जी...कुछ नही", मुझे समझ मे नही आ रहा था की क्या कहूँ |
"यही ना, कि मैं तुझे अपने साथ कहीं चुरा के ना ले जाउँ?"
हाँ मेरे दिमाग़ में यह ख्याल एक बार आया ज़रूर होगा, लेकिन मैं बोल पड़ी, "जी माता जी, कुछ भी तो नही...", फिर थोड़ा सोच कर मैंने फ़ैसला किया, "ठीक है, मैं आपके साथ धूमिया गाँव जाउंगी... आप को घर तक छोड़ कर आउंगी"
"मेरी अच्छी बिटिया, तू ना होती तो मेरा क्या होता? हाँ एक बात और बेटी... गाँव में लोग बाग मुझे माई कहते हैं... अगर तू भी मुझे माई बोलेगी तो मुझे अच्छा लगेगा..."
मैने मुस्कुरा कर कहा, "जी, माई- अब से मैं आपको माई कह कर ही बुलाउंगी"
"और हाँ मेरी बच्ची, जब तक मैं ना कहूं, अपने बाल खुले ही रखना... तेरे बाल तेरी कमर तक लंबे और घने हैं... खुले बालों में तू अच्छी लगती है...", माई ने मेरे बिल्कुल कान के पास आ कर कहा |
मैं शर्मा गयी और ना जाने क्यों मेरे मेरे मूहसे निकला, "जी, माई... जब तक आप ना कहें, मैं अपने बाल खुले ही रखूँगी"
"बहुत अच्छा...", न ज़ाने उसकी मुस्कान मे एक अजीब सी बात थी.... शायद वह खुश हो रही थी कि - ना जाने क्यों मैं उसकी एक एक बात मान रही हूँ... और शायद मैं धीरे धीरे उसके वश में चलती चली रही थी |
वह दोबारा सीढ़ियों पर जा कर बैठ गयी लेकिन इस बार उसने अपने गले से रुद्राक्ष की माला निकाल कर जपने लग गयी |
टिकेट की लाइन धीरे धीरे आगे बढ़ती गई और जल्दी ही मैंने धूमिया की दो टिकटें खरीद ली |
लेकिन जब मैने मुढ़ कर सीढ़ियों की तरफ देखा तो हैरान रह गयी क्योंकी माई वहाँ से गायब थी |
मैं उसे ढूँढने के लिए इधर उधर देख ही रही थी कि पीछे से उसने मुझे पुकारा, "कहाँ ढूँढ रही है, मेरी बच्ची? मैं तो यहाँ हूँ..."
"आप कहाँ चली गयी थी, माई?"
"पास वाले मंदिर से पवित्र भस्मी लाने - आ बैठ; तेरे माथे पर एक टीका लगा कर, तेरे बालों का एक जुड़ा बाँध दूं..."
मैं माई से लंबी थी, इस लिए मैं सीढ़ियों पर ही बैठ गयी, माई ने मेरे माथे पर भस्मी का टीका लगाया और मेरे बालों कोसमेट कर एक जुड़े में बाँध दिया |
जैसेही मैं उठ कर खड़ी हुई मुझे जैसे एक चक्कर सा आ गया... पर मैं सम्भल गयी, आज यह क्या हो रहा है?
“चलिए माई, ट्रेन का टाइम हो रहा है”, मैने कहा |
शायद बारिश और तूफान की वजह से ट्रेन रुक रुक कर चल रही थी| मुझे ना जाने क्यों नींद आने लगी, माई के कहने पर मैं उनके गोद में सर रख कर सो गयी... कहाँ तो माई कह रही थी कि वह कल रात की जागी हुई है और ना जाने क्यों मुझे ही नींद आ रही थी | जैसे ही मैं उनकी गोद में लेटी, उसने एक हाथ से मेरा माथा प्यार से सहलाना शुरू किया और उसका दूसरा हाथ सीधे मेरे सीने पर पहुँच गया... वह मेरे साड़ी के आँचल के नीचे हाथ डाल कर धीरे धीरे मेरे स्तनों को दुलारने लगी... मुझे नींद आ रही थी, ना जाने कब मैं सो गयी |
आख़िरकार ट्रेन धूमिया स्टेशन के से कुछ दूर पहले जा कर रुकी | तब माई ने कहा, “चल बिटिया, हम लोग यहीं उतार जाएँगे, यहाँ से मेरा घर पास है”
ट्रेन जहाँ रूकी थी, वहाँ आस पास घना जंगल था, पर मैने कहा, "जी माई "
ट्रेनसे उतार कर हमलोग जंगल के रास्ते चलने लगे, मुझे याद है कि मैने माई से दुबारा कोई सवाल नही किया कि हम लोग ईस जगह क्यों उतर रहे हैं या फिर माई का घर वहाँ से कितनी दूर है, बस हम लोग उतर गये और मैं जैसे मंत्र मुग्ध हो कर माई के साथ चल रही थी | ना जाने कितनी दूर चलने के बाद माई एक पूरने से एक मंज़िला मकान के पास आ कर रुकी |
घर छोटा सा ही था, पर उसके आँगन के बीचोबीच एक बड़ा सा पेड़ था | उस घर को देख कर ऐसा लग रहा था की मानो उस पेड़ को घेर कर ही माई के घर का आँगन और उसका घर बनाया गया हो | पेड़ के पास ही में एक कोने में एक कुँआ भी था |
माई ने कहा, "बेटी, यही मेरे घर है, चल अंदर चल... थोड़ा आराम कर ले उसके बाद मैं तुझे बाज़ार से कुछ समान लाने भेजूँगी, घर के थोड़े बहुत काम भी हैं,वह तुझे करना होगा; उसके बाद मुझे तेरे से बहुतसी बातें करनी है... मुझे बहुत दीनो से तेरे जैसी किसी लड़की की तलाश थी......"
ना जाने माई के मन में क्या था...
मैं सब कुछ सुन रही थी और समझ भी रही थी, लेकिन मुझे ना जाने क्यों कैसा बेसुध सा महसूस हो रहा था, और मेरे मूह से ज़बाब मे निकला, "जी, माई"
मुझे क्या मालूम था कि दरअसल मैं माई के मंत्र फूँके हुए भस्मी के टीके की वजह से उसके वश में थी |
No comments:
Post a Comment