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Sunday, August 17, 2014

धुमिया -२



मैं जानती थी कि मुझे आज ऑफीस जाने में काफ़ी देर हो जाएगी, इसलिए मैने उस बुज़ुर्ग औरत को टिकट काउंटर की सीडियों पर बिठा कर टिकट के लाइन मे खड़े होकर, अपने बॉस को फ़ोन लगाया, "सर, आज बारिश की वजह से ट्रेन लेट चल रही है | मुझे आने में देर होगी..."

"कोई बात नही, संध्या | तुम एक काम क्यों नही करतीतुम्हारी छुट्टियाँ तो कल से शुरू हो रही है | आज मौसम भी कुछ ठीक नहीहै... तुम एक काम करो, तुम आज से ही छुट्टी ले लो..."

"लेकिन, सर..."बॉस के मूड का कुछ पता नहीमैने तो सोचा था की वह मेरी हमेशा के लिए छुट्टी कर रहें हैं |

"अरे बाबातुम आज से ही छुट्टी लेलो | तुम्हे पाँच दिन की छुट्टी चाहिए था ना; उसकी जगह छह दिन का छक्का मार लो और इस महीने एक दिन सैयटर्डे शिफ्ट कर लेना... बस ख़तम हो हाई बात, छुट्टी ले लो आज से ही..."



बाप रे बाप! जान में जान आई | पता नही आज बॉस इतना मेहेरबान क्यों है?

"अरी बिटियाकिससे बात कर रही थी?"

"जी मैने अपने बॉस को फोन लगाया था... कह रही थी कि आज मुझे आने में देर हो जाएगी..."

"हाँ देर तो होगी ही... उसने तुझे आज छुट्टी दी की नही?"

यहसुन कर मैं बिल्कुल दंग रह गयी, "जीहाँ दी... लेकिन आपको कैसे मालूम?"

"अरी मेरी काफ़ी उमर हो गयी हैमैने तेरे से ज़्यादा दिनदेखें हैं... आज का मौसम देख... अगर दिन ढलते ढलते मौसम और खराब हो गया तोकौन ज़िम्मेदारी लेगा कि तू काम के बाद घर पहुँची कि नही?"

बात तो सही है |

फिर वह मुझ से कहने लगी, "बेटीअगर हो सके तो तू मुझे मेरे घर तक छोड़ दे... मैं कल रात की जगी हुई हूँ... अगर ट्रेन मे ही सो गयी तो ना जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाउंगी"

मैने कुछ देर सोचा उसके बाद मैने तय किया कि आज तक कभी भी मैने गाँव नही देखा थायह तो एक बेचारी सीधी साधी बुढ़िया है,मेरा क्या बिगड़ेगी... लेकिन आज कल ज़माना बहुत खराब है... पर कहीं यह सीधी औरत असल में टेढ़ी निकली तोवैसे आज दिन भर घर जाने के बाद सिवाय झक मरने के मैं करूँगी भी क्यासारे के सारे दोस्त भी आज घर मे ही रहेंगेआज कहीं प्लान बनाने का सवाल ही नही उठता... मौसम जो इतना खराब है...

"क्या सोच रही है"बिटिया?", उस बुज़ुर्ग औरत ने पूछा |

"जीमाता जी...कुछ नही"मुझे समझ मे नही आ रहा था की क्या कहूँ |

"यही ना, कि मैं तुझे अपने साथ कहीं चुरा के ना ले जाउँ?"

हाँ मेरे दिमाग़ में यह ख्याल एक बार आया ज़रूर होगालेकिन मैं बोल पड़ी, "जी माता जीकुछ भी तो नही..."फिर थोड़ा सोच कर मैंने फ़ैसला किया, "ठीक हैमैं आपके साथ धूमिया गाँव जाउंगी... आप को घर तक छोड़ कर आउंगी"

"मेरी अच्छी बिटियातू ना होती तो मेरा क्या होताहाँ एक बात और बेटी... गाँव में लोग बाग मुझे माई कहते हैं... अगर तू भी मुझे माई बोलेगी तो मुझे अच्छा लगेगा..."

मैने मुस्कुरा कर कहा, "जीमाई- अब से मैं आपको माई कह कर ही बुलाउंगी"

"और हाँ मेरी बच्चीजब तक मैं ना कहूंअपने बाल खुले ही रखना... तेरे बाल तेरी कमर तक लंबे और घने हैं... खुले बालों में तू अच्छी लगती है..."माई ने मेरे बिल्कुल कान के पास आ कर कहा |

मैं शर्मा गयी और ना जाने क्यों मेरे मेरे मूहसे निकला, "जीमाई... जब तक आप ना कहेंमैं अपने बाल खुले ही रखूँगी"

"बहुत अच्छा..."न ज़ाने उसकी मुस्कान मे एक अजीब सी बात थी.... शायद वह खुश हो रही थी कि - ना जाने क्यों मैं उसकी एक एक बात मान रही हूँ... और शायद मैं धीरे धीरे उसके वश में चलती चली रही थी |

वह दोबारा सीढ़ियों पर जा कर बैठ गयी लेकिन इस बार उसने अपने गले से रुद्राक्ष की माला निकाल कर जपने लग गयी |

टिकेट की लाइन धीरे धीरे आगे बढ़ती गई और जल्दी ही मैंने धूमिया की दो टिकटें खरीद ली |

लेकिन जब मैने मुढ़ कर सीढ़ियों की तरफ देखा तो हैरान रह गयी क्योंकी माई वहाँ से गायब थी |

मैं उसे ढूँढने के लिए इधर उधर देख ही रही थी कि पीछे से उसने मुझे पुकारा, "कहाँ ढूँढ रही हैमेरी बच्चीमैं तो यहाँ हूँ..."

"आप कहाँ चली गयी थीमाई?"

"पास वाले मंदिर से पवित्र भस्मी लाने - आ बैठतेरे माथे पर एक टीका लगा करतेरे बालों का एक जुड़ा बाँध दूं..."

मैं माई से लंबी थीइस लिए मैं सीढ़ियों पर ही बैठ गयीमाई ने मेरे माथे पर भस्मी का टीका लगाया और मेरे बालों कोसमेट कर एक जुड़े में बाँध दिया | 

जैसेही मैं उठ कर खड़ी हुई मुझे जैसे एक चक्कर सा आ गया... पर मैं सम्भल गयीआज यह क्या हो रहा है?

“चलिए माईट्रेन का टाइम हो रहा है”, मैने कहा |

शायद बारिश और तूफान की वजह से ट्रेन रुक रुक कर चल रही थीमुझे ना जाने क्यों नींद आने लगीमाई के कहने पर मैं उनके गोद में सर रख कर सो गयी... कहाँ तो माई कह रही थी कि वह कल रात की जागी हुई है और ना जाने क्यों मुझे ही नींद आ रही थी जैसे ही मैं उनकी गोद में लेटीउसने एक हाथ से मेरा माथा प्यार से सहलाना शुरू किया और उसका दूसरा हाथ सीधे मेरे सीने पर पहुँच गया... वह मेरे साड़ी के आँचल के नीचे हाथ डाल कर धीरे धीरे मेरे स्तनों को दुलारने लगी... मुझे नींद आ रही थीना जाने कब मैं सो गयी |

आख़िरकार ट्रेन धूमिया स्टेशन के से कुछ दूर पहले जा कर रुकी तब माई ने कहा, “चल बिटियाहम लोग यहीं उतार जाएँगेयहाँ से मेरा घर पास है

ट्रेन जहाँ रूकी थीवहाँ आस पास घना जंगल थापर मैने कहा, "जी माई "

ट्रेनसे उतार कर हमलोग जंगल के रास्ते चलने लगेमुझे याद है कि मैने माई से दुबारा कोई सवाल नही किया कि हम लोग ईस जगह क्यों उतर रहे हैं या फिर माई का घर वहाँ से कितनी दूर हैबस हम लोग उतर गये और मैं जैसे मंत्र मुग्ध हो कर माई के साथ चल रही थी ना जाने कितनी दूर चलने के बाद माई एक पूरने से एक मंज़िला मकान के पास आ कर रुकी |

घर छोटा सा ही थापर उसके आँगन के बीचोबीच एक बड़ा सा पेड़ था उस घर को देख कर ऐसा लग रहा था की मानो उस पेड़ को घेर कर ही माई के घर का आँगन और उसका घर बनाया गया हो पेड़ के पास ही में एक कोने में एक कुँआ भी था |

माई ने कहा, "बेटीयही मेरे घर हैचल अंदर चल... थोड़ा आराम कर ले उसके बाद मैं तुझे बाज़ार से कुछ समान लाने भेजूँगीघर के थोड़े बहुत काम भी हैं,वह तुझे करना होगाउसके बाद मुझे तेरे से बहुतसी बातें करनी है... मुझे बहुत दीनो से तेरे जैसी किसी लड़की की तलाश थी......"

ना जाने माई के मन में क्या था...

मैं सब कुछ सुन रही थी और समझ भी रही थीलेकिन मुझे ना जाने क्यों कैसा बेसुध सा महसूस हो रहा थाऔर मेरे मूह से ज़बाब मे निकला"जी, माई"

मुझे क्या मालूम था कि दरअसल मैं माई के मंत्र फूँके हुए भस्मी के टीके की वजह से उसके वश में थी |

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