थोड़ा आराम करने के बाद मैं माई के कही अनुसार बाज़ार के लिए निकल गयी, माई के के घर के आसपास सिवाए जंगल के कुछ भी नही था...लेकिन थोड़ी दूर चलने के बाद ही था धूमिया गाँव का बाज़ार |
माई की दी हुई फेहरिस्त में सब्जियों के साथ ज़्यादा तर पूजा पाठ की सामग्री ही लिखी हुई थी, लेकिन उसके साथ सूअर के माँस का कीमा और चार बोतल देशी शराब का भी ज़िक्र था |
मैं वैसे तो माँस मछली नही खाती, लेकिन फिर भी माई के कहे अनुसार मैने सारा सामान खरीद लिया... यों तो मैं शहर में मैं चाय की दुकान मैं निम्न वर्गीय लोगों के साथ खड़े हो कर चाय पीने से कतरा रही थी, लेकिन ना जाने क्यों मैं बिना दोबारा सोचे सीधे बाज़ार में लगी देसी शराब की दुकान में बे झिझक पहुँच गयी; शराब खरीदते वक़्त एक आदमी ने मेरे से कहा, "अरी कमसिन कली, यहाँ की तो नही लगती... किसके घर आई है? थोड़ी हम पर भी महरबान हो जा..."
"मैं माई के घर आई हूँ"
यह सुनते ही उसका चेहरा जैसे उतार गया... मानो वह डर गया हो | लगता है की माई की इस गाँव में बहुत चलती है... लोग बाग उसे जानते हैं और मानते भी हैं |
***
मुझे अभी भी याद है की माई के घर पहुँचने के बाद, मैने देखा की वह पेड़ के नीचे बैठ कर फिर से अपनी रुद्राक्ष की माला जप रही थी | उसके आगे एक छोटी सी थाली में एक सेब रखा हुआ था |
मुझे देखते ही वह बोली, "बिटिया, शराब ले कर आई है ना?"
मैने कहा, "जी हाँ, माई..."
"ठीक है, सारा सामान पेड़ के नीचे रख दे... मैं यह सारा समान 'उसको' पहले भेंट चढ़ाउंगी... अभी मेरी पूजा में थोड़ा सा वक़्त और लगेगा, तब तक तू कुँए के पानी भर ले, खाना बनाना है और मैने तुझे नहलाना भी तो है..."
जितनी देर में मैने कुँए से पानी निकाल कर हौदी, बल्टियों और मटकों मे भर दिया, उतनी देरमें माई की पूजा ख़तम हो चुकी थी और ऐसा लग रहा था की मानो वह मेरा ही इंतज़ार कर रही हो |
"ले बेटी, तोड़ा सा प्रसाद खा ले", यह कह कर उसने मुझे उस छोटी सी थाली में रखा हुआ सेब खाने को दिया |
मैने उसके कहे अनुसार पूरा सेब खा लिया |
खाने के साथ ही मेरा सिर दोबारा से चकराने लगा... जैसा की मुझे स्टेशन मे महसुस हुआ था |
शायद उसने मेरे मान की बात जान ली, " अभी तू मेरे साथ कमरे में चल, कुछ ही देर में बारिश शुरू होने वाली है, अगर तू भीग गई तो तेरा टीका धुल जाएगा... मेरे वश का असर तेरे से हट जाएगा... पर 'वह' चाहता है की मैं तुझ जैसी एक लड़की का ही भेंट उसे चढ़ाउँ... तू बहुत सुंदर है... कमसिन है, भोली भाली है और कुँवारी है... तेरी कौमार्य झिल्ली अभी तक बरकरार है... लेकिन 'उसने' ना जाने क्यों बार बार मुझ से कहा था कि था कि 'उसको' बिल्कुल तेरे जैसी कोई लड़की चाहिए... जब मैने तुझे दूर से ही चल कर आते हुए देखा था, तभी मैं समझ गई थी की मेरी तलाश ख़तम हो गई... ‘वह’ तेरी उफनती जवानी का रस चूस चूस कर पीएगा... इससे पहले कि उसका साया तुझ पर पड़े और मेरे वश का असर तेरे उपर से धुल जाए... मैं एक बार जी भर के तुझे बिल्कुल नंगी देखना चाहती हूँ... बोल बिटिया, क्या तू मेरे सामने नंगी होगी?"
जैसा कि मैने कहा की मैं सब कुछ सुन रही थी और समझ भी रही थी, लेकिन मुझे ना जाने क्यों कैसा बेसुघ सा महसूस हो रहा था...मैं समझ थी कि माई मुझे बिल्कुल नंगी देखना चाहती थी... और मुझे अज़ीब सा लग रहा था, लेकिन मेरे मन को लग रहा था कि माई जब इतने प्यार से मुझ से यह सब बोल रही है तो वह शायद मेरी तारीफ ही कर रही होगी | इस लिए मैं चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही |
"तू इतनी चुप क्यों हैं?”, फिर वह मुस्कुरा कर बोली , “तू बहुत स्त्रैण हैं... तेरी अंतर आत्मा तुझे जबाब देने से रोक रही है...चल बेटी अंदर चल और एक अच्छी बच्ची की तरह अपनी माई का कहा मान... उसके बाद मैं तुझे आंगन में और घर के बाहर नंगी हो ही कर कदम रखने की इज़ाज़त दूँगी... कमरे में जा कर के अपने सारे कपड़े उतार दे- सबसे पहले मैं तुझे एक बार जी भर के नंगी देखना चाहती हूँ - उसके बाद तुझे घर के काम भी तो करने हैं और देख अब तक तो दोपहर होने को आई.... देख घर कितना गंदा हुआ पड़ा है... और अब तक चूल्हा भी ठंडा पड़ा हुआ है ... तुझे झाड़ू पोंछा, चूल्हा चौका भी तो करना है... घर में तुझ जैसी जवान लड़की के होते हुए यह सब मैं बुढ़िया करूँगी क्या?... और उसके बाद मैने तुझे नहला धुला के भेंट के लिए तैयार भी तो करना है... चल बिटिया अंदर चल.. 'वह' सब जानता है, ‘वह’ सब कुछ देख सकता है... लेकिन तेरी कुंवारी जवानी को कोई अगर पहले नंगा देखेगा तो वह मैं होउंगी... क्योंकि मैं ही तुझे चुरा कर लाई हूँ... कुछ ही देर में डोम भी आता होगा; शमशान की राख और मिट्टी लेकर के... चल, चल, चल अंदर चल... और एक अच्छी बच्ची की तरह अपनी माई का कहा मान कर बिल्कुल नंगी हो जा..."
माई मुझे कमरे में ले गयी | कमरे में एक खटिया एक पुरानी लकड़ी की अलमारी और कुछ घरेलू सामान रखा हुया था | दीवार में एक बड़ा सा आईना भी टंगा हुआ था, माई ने मुझे उस आईने के सामने ला कर खड़ा किया और बोली, "अब मैं तेरे कपड़े उतारने जेया रही हूँ बेटी; और याद रही इसके बाद मेरे घर आँगन में तुझे नंगी हो कर ही रहना होगा..."
उसके बाद माई ने एक एक करके मेरी साड़ी, ब्लाऊज पेटिकोट और ब्रा और पैन्टी उतार दी,यहाँ तक की मारे मेरे हाथ की चूड़ियाँ, गले से सोने का हार और कान से सोने की बालियां भी और बोली, "हाय री, तू नंगे बदन कितनी सुंदर लगती है...", यह कह कर उसने मेरे बाल भी खोल दिए और बोली, "अपने आप को आईने ने में देख बिटिया तेरे ऊपर भरपूर जवानी चढ़ चुकी है, तू जो एक अच्छी जात की लड़की है यह तो तो मैं तुझे देखते ही समझ गयी थी, तेरी कमर तक लंबे काले और घने रेशमी बाल, पूरी तरह से विकसित सुडौल मम्मों का जोड़ा (स्तन), छरहरा बदन, मांसल कूल्हे... और यह मत भूल बिटिया... तेरे अंदर तो अभी जवानी की आग भड़क रही है... मैं उसकी गर्मी महसूस कर सकती हूँ... आ जा बिटिया मेरे गले से लग जा...”
यह कह कर माई ने मुझे अपने आगोश में ले लिया और मैं भी उससे लिपट गयी... कुछ देर बाद वह मुझ से बोली, "चल बेटी पहले मैं तुझे नहला दूं उसके बाद तुझे घर के काम भी तो करने हैं...", फिर ना जाने क्यों वह थोड़ी संजीदा सी हो गयी और बोली, "लेकिन उससे पहले मैं तुझे एक अहम फ़ैसला करने मौक़ा ज़रूर दूँगी..."
माई की दी हुई फेहरिस्त में सब्जियों के साथ ज़्यादा तर पूजा पाठ की सामग्री ही लिखी हुई थी, लेकिन उसके साथ सूअर के माँस का कीमा और चार बोतल देशी शराब का भी ज़िक्र था |
मैं वैसे तो माँस मछली नही खाती, लेकिन फिर भी माई के कहे अनुसार मैने सारा सामान खरीद लिया... यों तो मैं शहर में मैं चाय की दुकान मैं निम्न वर्गीय लोगों के साथ खड़े हो कर चाय पीने से कतरा रही थी, लेकिन ना जाने क्यों मैं बिना दोबारा सोचे सीधे बाज़ार में लगी देसी शराब की दुकान में बे झिझक पहुँच गयी; शराब खरीदते वक़्त एक आदमी ने मेरे से कहा, "अरी कमसिन कली, यहाँ की तो नही लगती... किसके घर आई है? थोड़ी हम पर भी महरबान हो जा..."
"मैं माई के घर आई हूँ"
यह सुनते ही उसका चेहरा जैसे उतार गया... मानो वह डर गया हो | लगता है की माई की इस गाँव में बहुत चलती है... लोग बाग उसे जानते हैं और मानते भी हैं |
***
मुझे अभी भी याद है की माई के घर पहुँचने के बाद, मैने देखा की वह पेड़ के नीचे बैठ कर फिर से अपनी रुद्राक्ष की माला जप रही थी | उसके आगे एक छोटी सी थाली में एक सेब रखा हुआ था |
मुझे देखते ही वह बोली, "बिटिया, शराब ले कर आई है ना?"
मैने कहा, "जी हाँ, माई..."
"ठीक है, सारा सामान पेड़ के नीचे रख दे... मैं यह सारा समान 'उसको' पहले भेंट चढ़ाउंगी... अभी मेरी पूजा में थोड़ा सा वक़्त और लगेगा, तब तक तू कुँए के पानी भर ले, खाना बनाना है और मैने तुझे नहलाना भी तो है..."
जितनी देर में मैने कुँए से पानी निकाल कर हौदी, बल्टियों और मटकों मे भर दिया, उतनी देरमें माई की पूजा ख़तम हो चुकी थी और ऐसा लग रहा था की मानो वह मेरा ही इंतज़ार कर रही हो |
"ले बेटी, तोड़ा सा प्रसाद खा ले", यह कह कर उसने मुझे उस छोटी सी थाली में रखा हुआ सेब खाने को दिया |
मैने उसके कहे अनुसार पूरा सेब खा लिया |
खाने के साथ ही मेरा सिर दोबारा से चकराने लगा... जैसा की मुझे स्टेशन मे महसुस हुआ था |
शायद उसने मेरे मान की बात जान ली, " अभी तू मेरे साथ कमरे में चल, कुछ ही देर में बारिश शुरू होने वाली है, अगर तू भीग गई तो तेरा टीका धुल जाएगा... मेरे वश का असर तेरे से हट जाएगा... पर 'वह' चाहता है की मैं तुझ जैसी एक लड़की का ही भेंट उसे चढ़ाउँ... तू बहुत सुंदर है... कमसिन है, भोली भाली है और कुँवारी है... तेरी कौमार्य झिल्ली अभी तक बरकरार है... लेकिन 'उसने' ना जाने क्यों बार बार मुझ से कहा था कि था कि 'उसको' बिल्कुल तेरे जैसी कोई लड़की चाहिए... जब मैने तुझे दूर से ही चल कर आते हुए देखा था, तभी मैं समझ गई थी की मेरी तलाश ख़तम हो गई... ‘वह’ तेरी उफनती जवानी का रस चूस चूस कर पीएगा... इससे पहले कि उसका साया तुझ पर पड़े और मेरे वश का असर तेरे उपर से धुल जाए... मैं एक बार जी भर के तुझे बिल्कुल नंगी देखना चाहती हूँ... बोल बिटिया, क्या तू मेरे सामने नंगी होगी?"
जैसा कि मैने कहा की मैं सब कुछ सुन रही थी और समझ भी रही थी, लेकिन मुझे ना जाने क्यों कैसा बेसुघ सा महसूस हो रहा था...मैं समझ थी कि माई मुझे बिल्कुल नंगी देखना चाहती थी... और मुझे अज़ीब सा लग रहा था, लेकिन मेरे मन को लग रहा था कि माई जब इतने प्यार से मुझ से यह सब बोल रही है तो वह शायद मेरी तारीफ ही कर रही होगी | इस लिए मैं चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही |
"तू इतनी चुप क्यों हैं?”, फिर वह मुस्कुरा कर बोली , “तू बहुत स्त्रैण हैं... तेरी अंतर आत्मा तुझे जबाब देने से रोक रही है...चल बेटी अंदर चल और एक अच्छी बच्ची की तरह अपनी माई का कहा मान... उसके बाद मैं तुझे आंगन में और घर के बाहर नंगी हो ही कर कदम रखने की इज़ाज़त दूँगी... कमरे में जा कर के अपने सारे कपड़े उतार दे- सबसे पहले मैं तुझे एक बार जी भर के नंगी देखना चाहती हूँ - उसके बाद तुझे घर के काम भी तो करने हैं और देख अब तक तो दोपहर होने को आई.... देख घर कितना गंदा हुआ पड़ा है... और अब तक चूल्हा भी ठंडा पड़ा हुआ है ... तुझे झाड़ू पोंछा, चूल्हा चौका भी तो करना है... घर में तुझ जैसी जवान लड़की के होते हुए यह सब मैं बुढ़िया करूँगी क्या?... और उसके बाद मैने तुझे नहला धुला के भेंट के लिए तैयार भी तो करना है... चल बिटिया अंदर चल.. 'वह' सब जानता है, ‘वह’ सब कुछ देख सकता है... लेकिन तेरी कुंवारी जवानी को कोई अगर पहले नंगा देखेगा तो वह मैं होउंगी... क्योंकि मैं ही तुझे चुरा कर लाई हूँ... कुछ ही देर में डोम भी आता होगा; शमशान की राख और मिट्टी लेकर के... चल, चल, चल अंदर चल... और एक अच्छी बच्ची की तरह अपनी माई का कहा मान कर बिल्कुल नंगी हो जा..."
माई मुझे कमरे में ले गयी | कमरे में एक खटिया एक पुरानी लकड़ी की अलमारी और कुछ घरेलू सामान रखा हुया था | दीवार में एक बड़ा सा आईना भी टंगा हुआ था, माई ने मुझे उस आईने के सामने ला कर खड़ा किया और बोली, "अब मैं तेरे कपड़े उतारने जेया रही हूँ बेटी; और याद रही इसके बाद मेरे घर आँगन में तुझे नंगी हो कर ही रहना होगा..."
उसके बाद माई ने एक एक करके मेरी साड़ी, ब्लाऊज पेटिकोट और ब्रा और पैन्टी उतार दी,यहाँ तक की मारे मेरे हाथ की चूड़ियाँ, गले से सोने का हार और कान से सोने की बालियां भी और बोली, "हाय री, तू नंगे बदन कितनी सुंदर लगती है...", यह कह कर उसने मेरे बाल भी खोल दिए और बोली, "अपने आप को आईने ने में देख बिटिया तेरे ऊपर भरपूर जवानी चढ़ चुकी है, तू जो एक अच्छी जात की लड़की है यह तो तो मैं तुझे देखते ही समझ गयी थी, तेरी कमर तक लंबे काले और घने रेशमी बाल, पूरी तरह से विकसित सुडौल मम्मों का जोड़ा (स्तन), छरहरा बदन, मांसल कूल्हे... और यह मत भूल बिटिया... तेरे अंदर तो अभी जवानी की आग भड़क रही है... मैं उसकी गर्मी महसूस कर सकती हूँ... आ जा बिटिया मेरे गले से लग जा...”
यह कह कर माई ने मुझे अपने आगोश में ले लिया और मैं भी उससे लिपट गयी... कुछ देर बाद वह मुझ से बोली, "चल बेटी पहले मैं तुझे नहला दूं उसके बाद तुझे घर के काम भी तो करने हैं...", फिर ना जाने क्यों वह थोड़ी संजीदा सी हो गयी और बोली, "लेकिन उससे पहले मैं तुझे एक अहम फ़ैसला करने मौक़ा ज़रूर दूँगी..."
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