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Sunday, August 17, 2014

धुमिया -१



मुझे आज भी वह दिन याद है | मुझे बस उस दिन ऑफीस जाना था और उसके बाद मैं एक लंबी छुट्टी पर जाने वाली थी | मैने किसी को कुछ नही बताया था, सोचा था कीसब दोस्तों और सहेलियों को एक सर्प्राइज़ दूँगी- काफ़ी दिनो वह लोग मेरे साथ मिलकर एक पार्टी का प्लान बना रहे थे लेकिन मेरे पास टाइम ही नही होता था, क्या करू; मैं अब काम करने लगी थी और मेरे ज़्यादा तर दोस्त अभी कॉलेज मे ही थे- लेकिन किस्मत मे कुछ और ही लिखा था | 

खैरआज सुबह उठने मे काफ़ी देर हो गई थीइसके लिए मैं मौसम को ज़िम्मेदार ठहराउंगी, कल रात से ज़ोरदार बारिश हो रही थी और बिजली कड़क रही थी,इस लिए मैं जल्दी जल्दी नहा धो कर तैयार हो गई पर मुझे ड्राइयर से बाल सूखने का मौका नही मिलाइसलिए मैने अपने अध गीले बालों का एक ढीला सा जुड़ा बनाया और एक अच्छी सी साड़ी और मैचिंग ब्लऊज पहन कर अपना पर्स और एक छतरी लेकर निकल पड़ी ट्रेन पकड़ने |

स्टेशन के रास्ते मे फूटपाथ पर लगी खाने की दुकानो मे से ज़्यादा तर अभी खुले ही नही थेपर चाय की दुकाने खुल चुकी थीबरसात के मौसम मे गरम चाय की चुस्कियों का मज़ा ही कुछ और होता है,लेकिन मुझे थोड़ी हिचक महसूस हो रही थी क्योंकि चाय की दुकानो मे खड़े लोग निम्न वर्ग के थे और मुझे घूर रहे थेइसमे उनका भी क्या दोषमेरी उम्र तो सिर्फ़ इक्कीस साल की थीलोग बाग और दोस्तों के अनुसार मेरा फिगर भी अच्छा है और मैं दिखने में भी खूबसूरत हूँऔर चलते वक़्त हर कम पर मेरे स्तन थिरक रहे थे मानो मेरी चड़ती जवानी का रस छलका रहें हों ..कुछ भी हो अभी चाय के लिए वक़्त भी नही थाअगर मैं चाय के लिए स्टेशन के स्टॉल मे भी रुकी तो मेरी ७:२० की ट्रेन छूट जाएगी मैने घड़ी देखी और तेज़ कदमो से स्टेशन की ओर बढ़ने लगी |

चलते चलते अचानक मेरी नज़र एक बुज़ुर्ग औरत पर पड़ी वह कुछ उदास होकर एक बंद दुकान की सीढ़ियों पर बैठी हुई थी और आते जाते लोगों की ओर एक दबी हुई इच्छा ले कर देख रहीथीशक्ल और कपड़ों से तो वह कोई भिखारन नही लग रही थी- शायद आसपास के किसी गाँव से आई होगी - जैसे ही उसकी नज़र मुझ पर पड़ीना जाने क्यों मुझे उस पर दया आ गयी -मैने घड़ी देखी७:१५ हो चुके थे ... पाँच मिनट में मैं दौड़ कर ट्रेन नही पकड़ सकती थी और अगली ट्रेन ७:४५ की थी |

मैने उस पास जा कर पूछा, "माता जी- क्या बात हैआप कुछ परेशान सी लग रही हैं?"

रास्ते से गुज़रता हुआ एक ट्रक ज़ोरदार हर्न बजा रहा था ..शायद इसलिए शायद उस औरत को मेरी बात सुनाई नही दीइसलिए मैने उसके पास जा कर झुक कर उससे दोबारा पूछा, "माता जी- क्या बात हैआप कुछ परेशन सी लग रही हैं?"

इतने मे ना जाने क्यों मेरा जुड़ा खुल गया और मेरे बाल खुल कर उस औरत के चेहरे के उपर बिखर गये और मेरा पल्लू भी सरक गयाजल्द बाजी में मैं पिन लगाना भूल गयी थी | 

मैनें जल्दी जल्दी अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और अपने बलों को समेट कर एक जुड़े में बाँधा और उनसे माफी माँगी | 

वह औरत मुस्कुरा कर बोली, "कोई बात नही बेटीतू एक नारी है ..लंबे घने बाल औरत का गहना होता है"

मैं थोड़ा शर्मा गयी, "लेकिन आप कुछ परेशान सी लग रहीं हैं ..क्या बात है?"

"क्या बतायूं बेटीमैं कल रात शहर आई थी दवाई लेने ..पर मेरा सारा पैसा खो गया तब से मैं यहीं बैठी हुई हूँ आज कल बिना टिकट ट्रेन मे जाना मुनासिब नही हैअगर पकड़ी गई तो?"

"कहाँ जाना हैआपको?"

"धूमिया", फिर से अचानक बिजली कडकी और तेज़ बारिश शुरू हो गयी | 

धूमिया की गाड़ी प्लॅटफॉर्म नंबर पाँच से चलती थी और मेरी लोकल ट्रेन प्लॅटफॉर्म नंबर दो से | अगर मैं इसकी मदद करूँ तो मेरी ७: ४५ की ट्रेन भी छूट जाएगी | लेकिन ना जाने क्यों उस औरत को सिर्फ़ टिकट के पैसे देकर उसको उसके हाल पर छोड़ने का मेरा मन मान नही कर रहा था |

"आप मेरे साथ आइए, मैं आपको टिकट दिला कर ट्रेन मे बैठा दूँगी| "लेकिन उससे पहले आप मेरे साथ चाय ज़रूर पीजिये...", मैने कहा |

यह बात तय थी उस औरत ने रात भर कुछ भी नही खाया होगा| अगर दुकाने खुली होतीतो शायद मैं कुछ खाने का इंतज़ाम भी करतीलेकिन इस वक़्त सारी दुकाने बंद थी |

उस औरत को उठने मे शायद सहारे की ज़रूरत थीजो की मैने उसको दिया और तब मैने गौर किया कि उस औरत के हाथों की उंगलियों में तरह तरह कीअंगूठियाँ थीकलाई और गले में रुद्राक्ष की माला |

पता नही क्यों उस औरत ने मुझ से कहा, "बेटीअभी तेरे बाल गीले हैं| अपने बालों को खुला छोड़ दे..."

ना जाने उस औरत की बातों मे क्या जादू था मैने उसे अपनी छतरी के नीचे लेने के बाद अपने बाल खोल दिए |

वह मेरे बालों को सहलाती हुई मेरे से लिपट कर चल रही थी और बार बार बोल रही थी, "तू एक बहुत अच्छी लड़की है... मुझे तेरे जैसी किसी लड़की की तलाश थी..."

तब मुझे थोड़ा शक हुआइस औरत के हाथों मे अंगूठियाँगले और कलाई में रुद्राक्ष की माला... कहीं यह जादू टोने वाली तो नही है?

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