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Monday, August 18, 2014

मेनका "ससुर बहु की प्रेम कहानी-3


प्लेन के बिज़्नेस क्लास की अपनी सीट को मेनका ने बटन दबा कर फुल्ली रिक्लाइन कर दिया & लेट गयी.एर-होस्टेस्स ने मुस्कुराते हुए उसे कंबल ओढ़ाया & "गुड नाइट" कह कर,लाइट ऑफ की & चली गयी.

मेनका आज स्विट्ज़र्लॅंड से अपना हनिमून मना कर लौट रही थी.पीछे की सीट पर विश्वजीत ऑलरेडी सो चुका थापर मेनका की आँखों से नींद अभी दूर थी.उसने खिड़की का फ्लॅप सरकया & बाहर देखा की चाँद की रोशनी बादलों को नहला रही थी...लग रहा था कि प्लेन बर्फ़ीले पहाड़ों के उपर चल रहा है.पहाड़ों के ध्यान से उसे अपने हनिमून का पहला दिन याद आ गया.

विश्वा & वो ज़ुरी के पास 1 पास अपने शेलेट(कॉटेज मे पहुचे).मेनका ने 1 टॉप & फुल-लेंग्थ फ्लोयिंग स्कर्ट पहना हुआ था.वो शेलेट के अंदर आई जब अपने बेडरूम की खिड़की से परदा हटाया तो कुदरत की खूबसूरती का अद्भुत नज़ारा देख कर उसका मुँह खुला का खुला रह गया.सामने ही आल्प्स रेंज के पहाड़ दिख रहे थे जोकि सूरज की रोशनी मे चमक रहे थे & पहाड़ों के नीचे दूर-2 तक फैले हरी मखमली घास के मैदान.

तभी पीछे से उसे विश्वा ने अपनी बाहों मे जाकड़ लिया &उसकी गर्दन पे किस करने लगा.

"छ्चोड़िए ना!देखिए कितनी सुंदर जगह है",मेनका कसमसाते हुए बोली.

"ह्म्म.",जवाब मे विश्वा ने उसकी स्कर्ट उठा दी,उसकी पॅंटी 1 तरफ खिसकाई & अपना पहले से निकाला लंड उसकी चूत मे घुसने लगा.

"प्लीज़,अभी नही,विश्वा",मेनका ने अलग होने की कोशिश करते हुए कहा.

पर विश्वा ने अनसुना करते हुए अपना हाथ उसके टॉप मे घुसा दिया & ब्रा के अंदर हाथ डाल कर उसकी बड़ी-2 चूचिया मसल्ने लगा,उसने अपना लंड पूरा का पूरा मेनका की चूत मे घुसा दिया & तेज़ी से धक्के लगाने लगा.मेनका ने सहारे के लिए आगे झुक कर खिड़की के सिल को पकड़ लिया.उसे इस चुदाई मे कोई मज़ा नही आ रहा था बल्किस्तेमाल किए जाने का एहसास हो रहा था जैसे की वो 1 बाज़ारु औरत हो & विश्वा उसका ग्राहक.

थोड़ी ही देर मे विश्वा उसके अंदर झाड़ गया,उस से अलग हुया & बोला,"तैय्यार हो जाओ.घूमने चलते हैं..."

मेनका ने फिर आँखें बंद करके नींद की बाहों मे जाना चाहा पर फिर उसे वो वाक़या याद आया जिसने उसके दिल मे विश्वा के लिए इज़्ज़त ओर भी ज़्यादा कम कर दी.

वो शेलेट के कार्पेट पे नंगी पड़ी थी.बगल मे फाइयर्प्लेस मे आग जल रही थी पर उसकी बेपर्दा जवानी की भदक्ति चमक के आगे आग भी बेनूर लग रही थी.विश्वा भी नंगा था ओर उसकी चूत मे अपनी जीभ डाल कर चाट रहा था.मेनका पागल हो रही थी..उसे बहुत अच्छा लगता था जब उसका पति उसकी चूत पे अपने मुँह से मेहरबान होता था.

पर हर बार की तरह मेनका का मन भरने से पहले ही विश्वा ने अपने होठ उसकी चूत से अलग कर दिया.मेनका का सिर 2 कुशान्स पर था,जिसके कारण उसका उपरी बदन थोडा उठा हुआ था.उसने आँखें खोली तो देखा कि विश्वा अपना लंड पकड़ कर हिला रहा है &उसकी तरफ देख रहा है.उसने गहरी साँस ली & उसका इशारा समझते हुए अपनी टांगे ओर फैला दी.

पर वो चौंक गई जब विश्वा अपना लंड उसकी चूत मे घुसाने के बजाय उसे सीने के दोनो ओर पैर करके बैठ गया ओर अपना लंड उसके मुँह के सामने हिलाने लगा,"इसे लो."

मेनका ने उसके लंड को अपने हान्थो मे पकड़ा ओर हिलाने लगी.विश्वा अक्सर उसे अपना लंड पकड़ने को कहता था पर उस वक़्त वो पीठ के बल लेटा होता था.आज की तरह उसने कभी नही किया था.

"हाथ मे नही मुँह मे लो."

"क्या?!!",मेनका ने पुचछा.

"हाँ,मुँह मे लो",कहकर उसने अपना लंड उसके हाथों से लिया & उसके बंद होठों पर से छुआने लगा.

"नही,मैं ऐसा नही करूँगी",मेनका ने उसे हल्के से धकेला & करवट लेकर उसके नीचे से निकल गयी.

"क्यू?"

"मुझे पसंद नही बस."

"अरे,क्या पसंद नही?"

"मुझे घिन आती है.मैं ऐसे नही करूँगी."

"जब मैं तुम्हारी चूत चाटता हूँ तब तो तुम्हे बड़ा मज़ा आता है &जब मैं वोही तुमसे चाहता हूँ तो तुम्हे घिन आती है!"

"देखिए,मैं आपसे बहस नही करूँगी.आप जो चाहते हैं वो मैं कभी नही कर सकती बस!"

"ठीक है,तो सुन लो आज के बाद मैं भी कभी तुम्हारी चूत नही चाटूँगा."कह कर विश्वा ने उसे लिटाया & उसके उपर आकर अपना लंड उसकी चूत मे पेल दिया& कुच्छ ज़्यादा ही तेज़ धक्के लगाने लगा जैसे उसे जानकार तकलीफ़ पहुँचना चाहता हो.मेनका ने अफ तक नही की ओर उसके झड़ने का इंतेज़ार करने लगी.

अभी भी इंडिया पहुँचने मे बाबाहुत वक़्त था पर मेनका अभी तक नही सो पाई थी.उस दिन के बाद विश्वा ने सच मे उसकी चूत पे अपने होठों को नही लगाया.
मेनका अब आगेके बारे मे सोचने लगी.राजपुरा पहुँचने के बाद 2 दिन वाहा रहना था & फिर उसे मायके जाना था.अपने माता-पिता का ख़याल आते ही उसके चेहरे पे मुस्कान आ गयी& वो उनकेलिए खरीदे गये तॉहफ़ों के बारे मे सोचने लगी & थोड़ी ही देर मे सो गयी.
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