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Sunday, August 17, 2014

ओह पापा ! आप भी ना -1




अब चूंकि नील अपने काम में इतना व्यस्त है कि सोनम पूरे दिन में कई
घण्टे मेरे साथ ही बिताती है। उसने मुझसे पूछा भी कि क्या वह मेरे साथ मेरे
जिम में, टेनिस, तैराकी में साथ आ सकती है तो मुझे उसे अपने साथ रखने में
कुछ ज्यादा ही खुशी का अनुभव हुआ। हम अक्सर साथ साथ शॉपिंग के लिए भी जाते
तो एक बार क्या हुआ कि-

सोनम-नील की शादी को दो महीने ही हुए थे, हम मत्लब सोनम और मैं एक
मॉल में स्विम सूट देख रहे थे, थोड़ा मुस्कुराते हुए, थोड़ा शरमाते हुए सोनम
ने मुझे एक छोटी सी टू पीस बिकिनी दिखाई और पूछा- यह कैसी है पापा?

और जिस तरह से यह पूछते हुए उसने मेरी ओर देखा, तो दोस्तो, मेरे
जीवन में शायद इससे उत्तेजक अदा किसी लड़की या औरत ने नहीं दिखाई थी। उसके
चेहरे पर मुस्कान थी, आँखों में शरारत भरा प्रश्न था, उसकी यह कामुक अदा
मुझे मेरे अन्दर तक हिला गई।

मैंने बिना एक भी पल गंवाए उसकी कमर पर अपने दोनों हाथ रखे और दबाते
हुए कहा- हाँ ! इसमें तुम लाजवाब लगोगी, तुम्हारी ही फ़िगर है इसे पहनने के
लिए एकदम उपयुक्त !

वो खिलखिलाई- मैं तो बस मजाक कर रही थी पापा ! मैं इसे आम स्विमिंगपूल में कैसे पहन सकती हूँ.
"लेकिन जान ! मैं मजाक नहीं कर रहा !" मैंने अपना एक हाथ उसकी कमर
के पीछे लेजा कर, दूसरा हाथ उसके कूल्हे पर रखकर उसे अपनी तरफ़ दबाते हुए
कहा- हमारा क्लब एक विशिष्ट क्लब है और यहाँ पर काफ़ी लड़कियाँ और महिलाएँ
ऐसे कपड़े पहनती हैं। और वीक-एण्ड्स को छोड़ कर अंधेरा होने के बाद तो शायद
ही कोई क्लब में होता हो ! तुम इसे उस वक्त तो पहन ही सकती हो !

अब तक मेरा ऊपर वाला हाथ भी नीचे फ़िसल कर उसके चूतड़ों पर आ टिका था।

मैंने सेलगर्ल की ओर घूमते हुए वो बिकिनी भी पैक करने को कह दिया।

अगली सुबह सोनल मेरे साथ ज़िम में थी, उसकी छरहरी-सुडौल काया से मेरी
नजर तो हट ही नहीं रही थी। उसने भी शायद मेरी घूरती नजर को पहचान लिया था,
तभी तो उसके गुलाबी गाल और लाल लाल से हो गए थे, और ज्यादा प्यारे हो गए
थे। वो मेरे पास आकर मेरे गले में एक बाजू डालते हुए बोली- जब आप मेरी तरफ़
इस तरह से देखते हैं ना पापा ! मुझे बहुत शर्म आती है पर अच्छा भी बहुत
लगता है।

उसने अपना चेहरा मेरी छाती में छिपा लिया, मैं उसकी पीठ थपथपाते हुए
उससे जिम में रखी मशीनों के बारे में बात करने लगा कि उन्हें कैसे
इस्तेमाल करना है और उनसे क्या नहीं करना है।

उसे मेरी बातें तुरन्त समझ आ जाती थी और अपनी बात भी मुझसे कह देती थी।

हमने ज़िम में थोड़ी वर्जिश करने के बाद आराम किया, फ़िर नाश्ता करके टेनिस के लिये क्लब आ गये।

उसे टेनिस बिल्कुल नहीं आता था तो मैंने उसे रैकेट पकड़ना आदि बता कर
शुरु में दीवार पर कुछ शॉट मार कर कुछ सीखने को कहा। गयारह बजे तक हम
वापिस घर आ गए और आते ही वो तो बगीचे में ही कुर्सी पर ढेर हो गई।

मैं उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गया और पूछा- क्या मैंने तुझे ज्यादा ही थका दिया?



उसने कहा- नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं !

पर उसके चेहरे के हाव भाव से साफ़ नजर आ रहा था कि वो थक चुकी है,
मैं उसकी कुर्सी के पीछे खड़ा हुआ और उसके कंधे और ऊपरी बाजुएँ सहलाते हुए
बोला- टेनिस प्रैक्टिस कुछ ज्यादा हो गई !

वो बोली- पापा, कई महीनों से मैंने कसरत आदि नहीं की थी ना, शायद इसलिए !

मैंने कुछ देर उसकी बाजू, कन्धे और पीठ सहलाई तो वो कुर्सी छोड़ खड़े होते हुए बोली- पापा, आप कितने अच्छे हैं।

यह कहते हुए उसने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया। मैंने भी उसके बदन
को अपनी बाहों के घेरे में ले लिया और कहा- मेरी सोनम भी तो कितनी प्यारी
है !

कहते हुए मैंने उसके माथे का चुम्बन लिया और जानबूझ कर अपनी जीभ से मुख का थोड़ा गीलापन उसके माथे पर छोड़ दिया।

"पापा, मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो मैं आपकी बहू बन कर इस घर में आई !"

"आप यहीं बैठ कर आराम कीजिए, मैं चाय बना कर लाती हूँ !" कहते हुए सोनम मुड़ी।

मैं कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगा- मैं भी कितना खुश हूँ सोनम जैसी बहू पाकर ! आज कितना अच्छा लगा सोनम के साथ !

तभी मन में यह विचार भी आया कि उसके वक्ष कैसे मेरी छाती में गड़े जा रहे थे जब वो मेरी बाहों में थी।

ओह ! जब सोनम चाय बनाने के लिए जाने लगी तो मेरी नजर उसके चूतड़ों पर
पड़ी, उसका टॉप थोड़ा ऊपर सरक गया था और शायद टेनिस खेलने से उसकी सफ़ेद
निक्कर थोड़ी नीचे होकर मुझे उसके चूतड़ों की घाटी का दीदार करा रही थी। अब
या तो उसने पैंटी पहनी ही नहीं था या फ़िर पैन्टी निक्कर के साथ नीचे खिसक
गई थी।
अब तो यह देखते ही छलांगें मारने लगी।

मैं भूल गया कि यह मेरी पुत्र वधू है, मैं उठ कर उसके पीछे रसोई में
गया, उसके पीछे खड़े होकर उसे चाय बनाते देखने लगा। मेरी निक्कर का उभार
उसके कूल्हों के मध्य में छू रहा था !

उसने पीछे मुड़ कर अपने कन्धे के ऊपर से मेरी आँखों में झांका और बोली- पापा, मैं तो चाय लेकर बाहर ही आने वाली थी।

उसने मेरे लिंग के पड़ रहे दबाव से मुक्त होने के लिए अपने चूतड़ थोड़े
अन्दर दबा लिए और मैं उसकी टॉप और निक्कर के बीच चमक रही नंगी कमर पर अपनी
दोनों हथेलियाँ रख कर बोला- मैं कुछ मदद करूँ?

मेरे इस स्पर्श से उसे एक झटका सा लगा और वो मेरी ओर देखने के लिए
मुड़ी कि उसके चूतड़ मेरे लिंग पर दब गए, मेरा उत्थित लिंग उसके पृष्ठ उभारों
के बिल्कुल बीच में जैसे घुस सा गया।

उसे मेरी उत्तेजना का आभास हो चुका था पर कोई प्रतिक्रिया दिखाए बिना वो बोली- चलिए पापा ! चाय तैयार है।

वो मेरे आगे आगे चलने लगी और मैं उसके पीछे पीछे उसकी नंगी कमर और ऊपर नीचे होते कूल्हों पर नजर गड़ाए चलने लगा।
बाहर पहुँचते पहुँचते मैं अपने को रोक नहीं पाया और जैसे ही सोनल चाय
स्टूल पर रखने के लिए झुकी, मैं अपनी दोनों हथेलियाँ उसके कूल्हों पर
टिकाते हुए बोला- नाइस बम्स !

इसी के साथ मैंने अपनी दोनों कन्नी उंगलियाँ कूल्हों की दरार में दबा दी।

"ओह पापा ! आप भी ना ! अभी चाय छलक जाती !" चाय रखने के बाद वो मेरी तरफ़ घूमते हुए बोली और मेरे हाथ फ़िर से उसकी कमर पर आ गये।

"तुम्हारे कूल्हे बहुत लाजवाब हैं सोनल ! आई लाइक दैम !" पता नहीं
मैं कैसे बोल गया और इसी के साथ मेरी आठों उंगलियाँ उसकी निक्कर की
इलास्टिक को खींचते हुए उसके चूतड़ों के नंगे मांस में गड़ गई।

सोनल के बदन में जैसी बिजली सी दौड़ गई और थोड़ी लज्जा मिश्रित मुस्कान के साथ बोली- सच में पापा?

हाँ सोनल ! तुम्हारे चूतड़ एकदम परफ़ेक्ट हैं ! इससे बढ़िया चूतड़ मैंने
शायद किसी के नहीं देखे !" कहले हुए मैंने अपनी हथेलियाँ कुछ इस तरह नीचे
फ़िसलाई कि सफ़ेद निक्कर उसकी जांघों में लटक गई।

सोनल अपनी जगह से हिली नहीं और अब मैं उसके नंगे चूतड़ अपने हाथों में मसल रहा था।

मैंने फ़ुसफ़ुसाते हुए उससे कहा- सोनल ! मैंने बहुत सारे चूतड़ इस तरह
नंगे देखे हैं, सहलाए हैं, चाटे भी हैं पर… कहते कहते मैंने अपनी उंगलियों
के पोर उन दोनों कूल्हों के बीच की दरार में घुसा दिए।

हाँ पापा ! मैंने सुना है कि आपने खूब… !" कहते हुए वो कामुक मुस्कान के साथ शरमा गई।

"तुम्हें किसने बताया?"

उसके कनखियों से मेरी तरफ़ देखा और अर्थपूर्ण मुस्कुराहट के साथ
बोली- अनुष्का ने ! वो मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी, वो मेरी सहेली थी और
चटखारे ले ले कर आपकी रसीली कहानियाँ मुझे सुनाया करती थी।
इसी के साथ वो खिलखिला कर हंस पड़ी।


अब यह मेरे लिए परेशानी वाली बात थी, मैंने पूछा- अनुष्का ने तुम्हें क्या क्या बताया?

अब मेरे हाथ खुल्लमखुल्ला सोनम के चूतड़ों से खेल रहे थे।
वो फ़िर खिलखिलाई- ये लड़कियों की आपस की बातें हैं ! मैं आपको नहीं बताऊँगी।

"लेकिन ना कभी अनुष्का ने ना कभी तुमने बताया कि तुम सहेलियाँ थी?"

"नील से मेरी शादी करवाने में अनुष्का का ही तो हाथ है ! दो साल
पहले जब एक बार आप लन्दन गये हुए थे तो अनुष्का मुझे यहाँ इस घर में लेकर
आई थी। उस समय आलिया मौसी भी यहीं थी। तो अनुष्का ने ही मौसी को बीच में
डाल कर नील की शादी मुझसे करवाई।"

"ओह ! तो आलिया भी तुम्हारे साथ मिली हुई है?"

"तो क्या पापा? आलिया मौसी तो आपके साथ भी… है ना?"

"ह्म्म !"

"आलिया मौसी ने ही तो बताया था कि…!!"

"क्या बताया था उसने? बोलो !?!"

"उन्होंने बताया था कि आप किसी भी लड़की को अपने चुम्बन से पागल कर सकते हो !"

"आलिया से भी ना चुप नहीं रहा जाता… तो अब तुम भी पागल…? हंह…?" मैंने उसके टॉप के अन्दर उसकी पीठ पर एक हाथ फ़िराते हुए कहा।

"हाँ पापा, मुझे भी अपने होंठों का जादू दिखाइए ना !" सोनम ने अपना चेहरा ऊपर उठा कर अपने होंठों को गोल करते हुए कहा।

मैं अपना हाथ उसकी पीठ से सरका कर गर्दन तक ले आया और उसके सिर को पीछे के जकड़ते हुए अपने होंठ उसके रसीले होंठों पर रख दिये।

मेरे हाथ के उसके सिर पर जाने से हुआ यह कि उसका टॉप भी मेरे हाथ के साथ सोनम के कन्धों में आकर रुका।

मेरा दूसरा हाथ जो अभी तक उसके चूतड़ों पर था, वो फ़िसल कर उसकी जांघ तक चला गया और उसकी जांघ को उठा कर मैंने अपनी बाजू पर ले लिया।

सोनम ने अपने को मुझसे छुटवाते हुए कहा- पापा, अन्दर चलते हैं।

मैंने उसे छोड़ते हुए कहा- चलो ड्राइंग रूम में चलो !

जैसे ही वो सीधी खड़ी हुई, उसकी निक्कर उसके पैरों में ढेर हो गई।

मैंने निक्कर को पकड़ कर उसके पैरों से निकाल कर कहा- चलो, मैं इसे सम्भालता हूँ।

वो आगे आगे, मैं पीछे पीछे उसकी निक्कर को हाथ में लेकर सूंघते हुए
चल रहा था, उसकी जांघों और योनि की गन्ध उस निक्कर में रमी हुई थी। कपड़ों
के नाम पर सोनम के गले में उसका टॉप एक घेरा सा बनाए पड़ा था। निक्कर मेरे
हाथ में थी, ब्रा पैन्टी पहनना शायद उसे भाता नहीं था।

अन्दर ड्राइंग रूम में जाकर सोनम ने ऐ सी और सारी बत्तियाँ जला दी। पूरा कमरा रोशनी से नहा गया।

और जैसे ही सोनम बत्तियाँ जला कर मेरी तरफ़ घूमी, उसने अपने गले से वो टॉप निकाल कर मेरे मुँह पर फ़ेंक दिया।

लेकिन मेरी नजर तो उसकी नाभि पर थी, उसमें उसने एक बाली पहनी हुई
थी। उसके बाद मेरी निगाहें सरक कर नीचे गई तो देखा योनि ने घने सुनहरे-भूरे
बालों का घूंघट औढ़ा हुआ था।

सोनम ने मेरी तरफ़ अपनी बाहें फ़ैलाते हुए कहा- आओ ना पापा ! मुझे अपने होंठों से पागल करो ना !

सोनम अपने होंठों पर जीभ फ़िरा रही थी, उसके गीले होंठ मुझे निमंत्रण दे रहे थे।
मैंने उसके गालों को अपनी हथेलियों में पकड़ कर उसकी गहरी आँखों में झांका और अपने होंठ उसके होंठों पर हल्के से रगड़ दिया।

उसके मुख से सिसकारी फ़ूटी- पापा ! और करो ! प्लीज़ !

"जानू… अब तुम्हारी बारी है !" मैं उसके नंगे चूतड़ों को अपने हाथों में सहेजते हुए फ़ुसफ़ुसाया।

"पापा…प्लीज़ आप करो ना ! प्लीज़ पापा ! करो !" वो एक छोटे बच्चे की तरह मचलते हुए बोली- जन्नत का मजा तो आप ही मुझे देंगे ना पापा !

"ओ… ठीक है ! मेरे सिर को आपने हाथों में थाम लो सोनम !"

बिना एक भी शब्द बोले उसने मेरा सिर पकड़ कर अपने चेहरे पर झुका
लिया, हमारे होंठों ने एक दूसरे को छुआ और मैं उसे अपने होंठों से सताने
लगा।

सोनम का पूरा बदन काम्प रहा था और उसके मुख से कामुक सीत्कारें निकल रही थी।

और तभी अचानक एकदम से उसने मेरे होंठों को चॉकलेट की तरह चूसना-खाना शुरु कर दिया।

सोनम की इस हरकत ने मुझे भी पागल सा कर दिया, मैंने उसके चूतड़ों के
नीचे अपने दोनों हाथ ले जा कर उसे ऊपर को उठाया तो उसने अपनी टांगें मेरे
कूल्हों के पीछे जकड़ ली।

इससे उसके चूतड़ों के बीच की दरार चौड़ी हो गई और मेरा मध्यमा उंगली उसकी गाण्ड के छिद्र को कुरेदने लगी।

लड़की मेरे बदन पर सांप की तरह लहरा कर रह गई और मेरी उंगली उस कसे छिद्र को भेदते हुए लगभग एक इंच तक अन्दर घुस गई।

सोनम हांफ़ रही थी- ऊ… पापा… उह पा…आह… ना…

मुझे याद नहीं हम कितनी देर तक इस हालत में रहे होंगे कि तभी उसका मोबाइल घनघना उठा।

और इस आवाज से हमारे प्यार के रंग में भंग हो गया।

उसने एक हल्के से झटके के साथ अपनी टांगें मेरी कमर से नीचे उतारी और बोली- पापा, जरा उंगली निकालो, मैं फ़ोन देख लूँ !

जैसे ही मैंने अपनी उंगली उसकी गाण्ड से निकाली उसने मेरा हाथ पकड़ा और उसे अपने नाक तक ले जा कर मेरी उंगली सूंघने लगi।


उसने पीछे हटकर फ़ोन उठाकर देखा तो उसके पति यानि मेरे बेटे नील का फ़ोन
था।

मैंने सोनम की आँखों में देखा तो वो शर्म के मारे मुझसे नजरें चुराने लगी।

मैं इसके पास गया और सोनम से सट कर फ़ोन पर अपना कान लगा दिया।

नील उससे पूछ रहा था कि सुबह क्या क्या किया और सोनम ने भी अभी आखिर की कुछ घटनाओं को छोड़ कर उसे सब बता दिया।

नील ने पूछा कि वो हांफ़ क्यों रही है तो सोनम ने बताया कि वो नीचे
थी और फ़ोन ऊपर, फ़ोन की घण्टी सुन कर वो भाग कर ऊपर आई तो उसकी सांस फ़ूल गई।

सच में मेरी पुत्र-वधू काफ़ी चतुर है ! मैंने मन ही मन भगवान को इसके लिये धन्यवाद किया।

मैं अपने बीते अनुभवों से जानता था कि गर्म लोहे पर चोट करने का
कितना फ़ायदा होता है। मेरे बेटे का फ़ोन बहुत गलत समय पर आया था, बिल्कुल उस
समय जब मैं अपने बहू की योनि तक पहुँच ही रहा था और वो भी मेरी हरकतों का
माकूल जवाब दे रही थी।

अगर नील का फ़ोन बीस मिनट भी बाद में आया होता तो मेरी बहू अपने ससुर के अनुभवी लौड़े का पूरा मजा ले रही होती।

लेकिन शायद भाग्य को यह मंजूर नहीं था !

मैं फ़ोन पर कान लगाए सुन रहा था– मेरे बेट-बहू लगातार 'लव यू !' और चुम्बनों का आदान प्रदान कर रहे थे फ़ोन पर !

और मुझे महसूस हो रहा था कि जितनी देर फ़ोन पर मेरे बेटे बहू की यह
रासलीला चलती रहेगी, मेरे लण्ड और मेरी बहू सोनम की चूत के बीच की दूरी
बढ़ती जाएगी। और शायद नील को बातचीत खत्म करने की कोई जल्दी भी नहीं थी।

मुझे आज मिले इस अनमोल अवसर को मैं व्यर्थ ही नहीं गंवा देना चाहता था, तो मैंने अपनी बहू को उसके पीछे आकर अपनी बाहों में जकड़ लिया।

सोनम मेरे बेटे के साथ प्यार भरी बातों में मस्त थी और उसने मेरी
हरकत पर ज्यादा गौर नहीं किया, वो अपने पति से बिना रुके बातें करती रही
लेकिन उसकी आवाज में एक कम्पकंपाहट आ गई थी !

"क्या हुआ? तुम ठीक तो हो ना?" मेरे बेटे नील ने थोड़ी चिन्ता जताते हुए पूछा।

थोड़ा रुकते हुए सोनम ने जवाब दिया- उंह… हाँ ! ठीक हूँ… जरा हिचकी आ गई थी।

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