अपना घर और अपना बिस्तर- तकिया ना हो तो मुझे ठीक से नींद नही आती और वैसे भी मैं तो माई ने तो मुझे क़ैद करके रखा था- 'भेंट चढ़ने के लिए '- यह शायद देशी शराब का असर था कि मुझे थोड़ी नींद आ गई | लेकिन आँख खुलते के साथ ही, मैं मानो अपने हालत से दोबारा वाकिफ़ हो गई |
माई के कहे अनुसार मुझे आज से कुछ ख़ास नियम क़ानूनो को मान कर चलना था ...
कुछ भी हो इस गाँव की आबोहवाह में ऐसी ताज़गी थी जो कि शहर के वातावरण में नही होती है| आज घने बादल भी छाए हुए थे बिजली भी कड़क रही थी, लगता है कि ज़ोरों की बारिश होने वाली है |
मैंने धीरे धीरे उठ कर कमरे के बाहर आँगन में कदम रखा, माई तब भी सो रही थी | किसी भी दरवाज़े पर कोई भी ताला नही था,पर मैं भाग भी नही सकती थी, क्योंकि माई का टोटके की वजह से मैं अपने बदन पर कोई कपड़ा नही पहन सकती थी... बिना कपड़ो के इस वीरान इलाक़े से बाहर जाना नामुमकिन है |
मैं यह सब सोच ही रही थी कि अचानक मेरा ध्यान कहीं दूर से आ रही मंदिर की घंटियों और शंख की आवाज़ पर गया | मैं आवाज़ को सुनती हुई ना जाने कब घर के पिछले दरवाज़े से निकल कर जो पतला सा रास्ता शौचालय की तरफ जाता था-वहाँ खड़ी हो कर जंगल कि तरफ़ देखने लगी कि मंदिर की घंटियों, ढाक ढोल की आवाज़ की आवाज़ और शंख ध्वनि जो मेरे अंदर एक जोश सा भर रही है - किस तरफ से आ रही है... मुझे लगा कि कुछ ही दूर ज़रूर कहीं माँ काली का कोई मंदिर होगा |
जहाँ सुबह सुबह आरती हो रही है, मैने तालाब में उतर कर एक डुबकी लगाई और अपने हाथ जोड़ कर माँ काली का स्मरण किया - "हे माँ काली, मेरी रक्षा करो..."
तभी ज़ोर से बिजली कड़क उठी और तेज़ बारिश शुरू हो गई |
मैं तालाब के पानी से निकल कर माई के घर के आँगन में गई और जल्दी जल्दी आँगन में सूख रहे माई के कपड़ों को उतारने लगी,फिर घर के बरामदे में आ कर एक गमछा ले कर अपने बाल और बदन पोंछने लगी, शुक्र है कि माई तब भी सो रही थी | उसे मालूम था कि मैं उसके घर कहीं भाग भी नही सकती थी, लेकिन उसने मुझे घर के बाहर अकेले जाने से माना कर रखा था |
जब मैं कमरे में गई तो माई उठ चुकी थी | मैंने माई के कहे अनुसार ज़मीन पर घुटनो के बल बैठ कर अपना झुका कर ज़मीन पर टेक कर अपने बालों को सामने की तरफ़ फैला दिया, और बोली, "प्रणाम, माई!"
माई ने अपने दोनो पैर के तलवे मेरे बालों पर रख कर मुझे 'आशीर्वाद' दिया, और बोली, "आ बिटिया मेरे पास आ कर बैठ... बारिश हो रही है क्या?"
"हाँ माई..."
"हाय दैया! मेरे कपड़े भीग जाएँगे...”
"मैं कपड़े उतार के ले आई..."
"और तू बारिश में भीग भी गई? तभी तो तेरे बाल गीलें हैं"
"हाँ, माई”
"माई, यहाँ आस पास कोई मंदिर है क्या?"
"हाँ, थोड़ी दूर ही काली मा का एक मंदिर है"
"आप कभी गई हैं वहाँ?"
"नही बेटी, मेरा रास्ता अलग है- मैं काली माँ के मंदिर के आस पास भी नही जा सकती ...पर यह सब तू क्यूँ पूछ रही है?”
“जी कुछ नही... आप बैठिए, मैं पानी लाती हूँ आप मूह हाथ धो लीजिए |", ना जाने क्यों मुझे लग रहा था कि माई कुछ कमज़ोर सी लग रही थी...
"और हाँ, बिटिया- उसके बाद शराब की बोतल, दो गिलास और बचा हुआ माँस भी ले कर आना... बहुत भूख लगी है मुझे...और हाँ बिटिया, अब से हर रोज़ कल्लू आ कर खाने पीने का सामान दे कर जाएगा, याद रही उसकी नज़र तुझ पर नही पढ़नी चाहिए |"
मुझे लग रहा था कि जैसे जब व्रत रखा जाता है, तो लोग ख़ान पान में परहेज़ करते हैं- वैसे ही शायद माई आज कल सिर्फ़ माँस और शराब पी रही थी और मुझे भी वैसा ही खिला पीला रही थी |
"जी माई..", यह बोल कर मैं रसोई से शराब और माँस ले आई , माई मूह हाथ धो कर पहले से ही ज़मीन पर उकड़ू हो कर बैठ कर खाने का इंतेज़ार कर रही थी | मैने दो थालियों में माँस परोसा और गिलास में शराब डाल कर माई की ओर बढ़ाया... माई ने मुझे अपने बिल्कुल पास आकर उकड़ू हो कर बैठने को कहा और अपने हाथों से मुझे उसने शराब का एक घूँट पीला कर मेरे बालों को सहलाती हुई बोली, "मेरी प्यारी बच्ची... कितनी सुंदर है तू... खुले बालों में और नंगी और भी खूबसूरत लगती है तू...", यह कह वह मेरे स्तानो को भी हल्का हल्का दबाने लगी और फिर उसका हाथ मेरी दो टाँगो के बीच में चला गया...
मैनें चौंक कर पूछा, "यह आप क्या कर रहीं हैं माई?"
"कुछ नही बेटी, बस तेरी जवानी की ज़रा तारीफ कर रहीं हूँ... बरसों पहले मुझे भी यहाँ कोई चुरा कर लाया था, लेकिन मैं तेरे से छोटी थी, उसने मुझे भी कई दिनों तक घर में बिल्कुल नंगी रखा, शराब पिलाया, माँस खिलाया... फिर वक़्त आने पर उसने मुझे भी भेंट चढ़ाया, मैं भी तेरी ही तरह कुँवारी थी, बिल्कुल अनछुई.... इस लिए पहली बार चुदते वक़्त मुझे बहुत दर्द हुआ था... तुझे भी होगा... कौमार्य झिल्ली के फटते समय खून भी बहा था... मैं जानती हूँ के तेरे साथ भी ऐसा ही होगा, पर धीरे धीरे सब कुछ अच्छा लगने लगेगा...”
“पर आपने तो कहा था कि, ऐसा योग सौ साल में एक बार आता है...”
"हाँ, बिटिया... परसों वाला योग... वरना वैसे तो किसी भी अमावस को लड़की भेंट चढ़ाई जा सकती है..."
“आपको यहाँ चुरा कर कौन लाया था?”
“मेरा गुरु, उनको गुज़रे बहुत साल हो गये... भेंट चढ़ने के बाद मैं उसी (गुरु की) की हो कर रह गई... तंत्र मंत्र सीखी... और आज तू मेरे पास है... ”
मैं अवाक हो कर माई की तरफ़ देख रही थी |
माई बड़े लाड से बोली, "अब ऐसे आँखे फाड़ फाड़ कर मत देख बेटी, चल शराब पी कर नशा कर ले...तुझे घर के काम भी तो करने हैं... थोड़ी देर में कल्लू भी आता होगा माँस और शराब ले कर, उससे पहले जा कर पानी भर ले... बरसात भी तेज़ हो रही है...कोई बात नही... मैं बदन पोंछ दूँगी और तेरे बाल सूखा कर कंघी कर दूँगी... आज रात से तुझे तो मेरी तांत्रिक पूजा में मदद भी करनी होगी...”
माई के कहे अनुसार मुझे आज से कुछ ख़ास नियम क़ानूनो को मान कर चलना था ...
कुछ भी हो इस गाँव की आबोहवाह में ऐसी ताज़गी थी जो कि शहर के वातावरण में नही होती है| आज घने बादल भी छाए हुए थे बिजली भी कड़क रही थी, लगता है कि ज़ोरों की बारिश होने वाली है |
मैंने धीरे धीरे उठ कर कमरे के बाहर आँगन में कदम रखा, माई तब भी सो रही थी | किसी भी दरवाज़े पर कोई भी ताला नही था,पर मैं भाग भी नही सकती थी, क्योंकि माई का टोटके की वजह से मैं अपने बदन पर कोई कपड़ा नही पहन सकती थी... बिना कपड़ो के इस वीरान इलाक़े से बाहर जाना नामुमकिन है |
मैं यह सब सोच ही रही थी कि अचानक मेरा ध्यान कहीं दूर से आ रही मंदिर की घंटियों और शंख की आवाज़ पर गया | मैं आवाज़ को सुनती हुई ना जाने कब घर के पिछले दरवाज़े से निकल कर जो पतला सा रास्ता शौचालय की तरफ जाता था-वहाँ खड़ी हो कर जंगल कि तरफ़ देखने लगी कि मंदिर की घंटियों, ढाक ढोल की आवाज़ की आवाज़ और शंख ध्वनि जो मेरे अंदर एक जोश सा भर रही है - किस तरफ से आ रही है... मुझे लगा कि कुछ ही दूर ज़रूर कहीं माँ काली का कोई मंदिर होगा |
जहाँ सुबह सुबह आरती हो रही है, मैने तालाब में उतर कर एक डुबकी लगाई और अपने हाथ जोड़ कर माँ काली का स्मरण किया - "हे माँ काली, मेरी रक्षा करो..."
तभी ज़ोर से बिजली कड़क उठी और तेज़ बारिश शुरू हो गई |
मैं तालाब के पानी से निकल कर माई के घर के आँगन में गई और जल्दी जल्दी आँगन में सूख रहे माई के कपड़ों को उतारने लगी,फिर घर के बरामदे में आ कर एक गमछा ले कर अपने बाल और बदन पोंछने लगी, शुक्र है कि माई तब भी सो रही थी | उसे मालूम था कि मैं उसके घर कहीं भाग भी नही सकती थी, लेकिन उसने मुझे घर के बाहर अकेले जाने से माना कर रखा था |
जब मैं कमरे में गई तो माई उठ चुकी थी | मैंने माई के कहे अनुसार ज़मीन पर घुटनो के बल बैठ कर अपना झुका कर ज़मीन पर टेक कर अपने बालों को सामने की तरफ़ फैला दिया, और बोली, "प्रणाम, माई!"
माई ने अपने दोनो पैर के तलवे मेरे बालों पर रख कर मुझे 'आशीर्वाद' दिया, और बोली, "आ बिटिया मेरे पास आ कर बैठ... बारिश हो रही है क्या?"
"हाँ माई..."
"हाय दैया! मेरे कपड़े भीग जाएँगे...”
"मैं कपड़े उतार के ले आई..."
"और तू बारिश में भीग भी गई? तभी तो तेरे बाल गीलें हैं"
"हाँ, माई”
"माई, यहाँ आस पास कोई मंदिर है क्या?"
"हाँ, थोड़ी दूर ही काली मा का एक मंदिर है"
"आप कभी गई हैं वहाँ?"
"नही बेटी, मेरा रास्ता अलग है- मैं काली माँ के मंदिर के आस पास भी नही जा सकती ...पर यह सब तू क्यूँ पूछ रही है?”
“जी कुछ नही... आप बैठिए, मैं पानी लाती हूँ आप मूह हाथ धो लीजिए |", ना जाने क्यों मुझे लग रहा था कि माई कुछ कमज़ोर सी लग रही थी...
"और हाँ, बिटिया- उसके बाद शराब की बोतल, दो गिलास और बचा हुआ माँस भी ले कर आना... बहुत भूख लगी है मुझे...और हाँ बिटिया, अब से हर रोज़ कल्लू आ कर खाने पीने का सामान दे कर जाएगा, याद रही उसकी नज़र तुझ पर नही पढ़नी चाहिए |"
मुझे लग रहा था कि जैसे जब व्रत रखा जाता है, तो लोग ख़ान पान में परहेज़ करते हैं- वैसे ही शायद माई आज कल सिर्फ़ माँस और शराब पी रही थी और मुझे भी वैसा ही खिला पीला रही थी |
"जी माई..", यह बोल कर मैं रसोई से शराब और माँस ले आई , माई मूह हाथ धो कर पहले से ही ज़मीन पर उकड़ू हो कर बैठ कर खाने का इंतेज़ार कर रही थी | मैने दो थालियों में माँस परोसा और गिलास में शराब डाल कर माई की ओर बढ़ाया... माई ने मुझे अपने बिल्कुल पास आकर उकड़ू हो कर बैठने को कहा और अपने हाथों से मुझे उसने शराब का एक घूँट पीला कर मेरे बालों को सहलाती हुई बोली, "मेरी प्यारी बच्ची... कितनी सुंदर है तू... खुले बालों में और नंगी और भी खूबसूरत लगती है तू...", यह कह वह मेरे स्तानो को भी हल्का हल्का दबाने लगी और फिर उसका हाथ मेरी दो टाँगो के बीच में चला गया...
मैनें चौंक कर पूछा, "यह आप क्या कर रहीं हैं माई?"
"कुछ नही बेटी, बस तेरी जवानी की ज़रा तारीफ कर रहीं हूँ... बरसों पहले मुझे भी यहाँ कोई चुरा कर लाया था, लेकिन मैं तेरे से छोटी थी, उसने मुझे भी कई दिनों तक घर में बिल्कुल नंगी रखा, शराब पिलाया, माँस खिलाया... फिर वक़्त आने पर उसने मुझे भी भेंट चढ़ाया, मैं भी तेरी ही तरह कुँवारी थी, बिल्कुल अनछुई.... इस लिए पहली बार चुदते वक़्त मुझे बहुत दर्द हुआ था... तुझे भी होगा... कौमार्य झिल्ली के फटते समय खून भी बहा था... मैं जानती हूँ के तेरे साथ भी ऐसा ही होगा, पर धीरे धीरे सब कुछ अच्छा लगने लगेगा...”
“पर आपने तो कहा था कि, ऐसा योग सौ साल में एक बार आता है...”
"हाँ, बिटिया... परसों वाला योग... वरना वैसे तो किसी भी अमावस को लड़की भेंट चढ़ाई जा सकती है..."
“आपको यहाँ चुरा कर कौन लाया था?”
“मेरा गुरु, उनको गुज़रे बहुत साल हो गये... भेंट चढ़ने के बाद मैं उसी (गुरु की) की हो कर रह गई... तंत्र मंत्र सीखी... और आज तू मेरे पास है... ”
मैं अवाक हो कर माई की तरफ़ देख रही थी |
माई बड़े लाड से बोली, "अब ऐसे आँखे फाड़ फाड़ कर मत देख बेटी, चल शराब पी कर नशा कर ले...तुझे घर के काम भी तो करने हैं... थोड़ी देर में कल्लू भी आता होगा माँस और शराब ले कर, उससे पहले जा कर पानी भर ले... बरसात भी तेज़ हो रही है...कोई बात नही... मैं बदन पोंछ दूँगी और तेरे बाल सूखा कर कंघी कर दूँगी... आज रात से तुझे तो मेरी तांत्रिक पूजा में मदद भी करनी होगी...”
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