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Sunday, August 17, 2014

धुमिया ५




"कल्लू? दिन भर कहाँमर गया था... रे डोम की औलाद?", माई गुस्से से बोली |

"गुस्सा क्यों करती हो माई, रात भर शमशान में काम करने बाद, गया था बाज़ार को दारू पीने... की इतने में खबर आई की रामुआ का बेटा दुखिया बेचारा लंबी बीमारी के बाद मर गया है... और तुम ही ने तो कहा था की तुम्हे तुम्हे शमशान की राख और मिट्टी की ज़रूरत है, राख और मिट्टी किसी कुंवारे लड़के की हो तो और अच्छा होगा | मैं उसी को तो जला कर आ रहा हूँ, उसके उसके घरवाले उसकी अस्थियाँ चुन रहे थे... बस मैं भी उनकी मदद कर रहा था, और तुम्हारे लिए उसकी चीता में से थोड़ी राख और मिट्टी चुरा कर लाया हूँ ... यह देखो, उन लोगों ने मुझे सौ रुपये का इनाम भी दिया है...", उस आदमी ने नादान बनने का नाटक करते हुए कहा और माई के सामने के पोटली रख दीजिसमें की वह शमशान की राख और मिट्टी चुरा कर लाया था |


"और तुझे याद हैं ना मैं ने क्या कहा था?"

"हाँ, माई... घर के दरवाज़े के आस पास की झाड़ियों को काट कूट कर सॉफ कर दूँगा और तुम्हारे आँगन में एक गढ्ढा भी खोदना है मुझे...”,फिर वह बोला,'"माई, आज बाज़ार में मैने एक लड़की को देखा... वह कह रही थी कि वह तुम्हारे यहाँ आई है, बस ऐसा कुछ करो की...", वह बोल ही रा था कि माई ने उसे टोक दिया |

"तो तू जानता है की मेरे यहाँ एक लड़की आई हुई है और तूने उसे देखा भी है?”, माई के बोलने का अंदाज़ कुछ ऐसा था की मुझे एक खटका सा लगा |

"हाँ, माई... दारी के मम्मे बहुत बड़े बड़े हैं, गाँड़ में बहुत माँस हैं साली के... गोरी चिट्टी कमसिन कली हैमाँ की लौडी यह बड़ा सा जुड़ा बना के आई थीदारू लेने... बस एकबार शादी करवा दो मेरी उससे... मा कसम उसे नंगी करके, उसके बाल पकड़ के हर रोज़ रात भर चोदूँगा मैं... गाँड़ भी मारूँगा मैं उसकी..."

"हाँ... हाँ कमज़ात! ... तेरी मा ने तो तुझको अपनी गाँड़ मरा कर, तुझे गाँड़ से जो पैदा किया था... मादरचोद! बेटी लगती है वह मेरी... तेरी माँ को गाँव के सारे कुत्ते आ कर चोदे...."

"अरी! अरी!! अरी!!! गुस्सा क्यों करती हो माई? मुझ डोम को क्या मालूम क़ि वह तुम्हारी बेटी लगती है... हा हा हा ... दारू पी रखी हैतो मुँह से अन्ट सन्ट निकल गया..."

“अब खड़े खड़े मेरा मुँह मत देखजल्दी अपना काम पूरा कर और दफ़ा हो यहाँ से...

“पर माईवह लड़की कहाँ है?

“आई थी मेरे पास पूजा पाठ करवानेचली गयी...

“सच्ची में चली गई?

“और नही तो क्याते रेलिए नंगी हो कर बैठी होगी मेरे घर मेंके कब कल्लू आएगा... बाल पकड़ के चोदेगा... हाँ?

“पर वह किस लिए पूजा पाठ करवाने आई थीदोबारा कब आएगी?

“आई थी काम सेकहाना, चली गई... मैं एक ही बार में हर मसले का हल निकालती हूँ... पर तुझे जनानियों की बातों में इतनी दिलचस्पी क्यों हैतू चुपचाप अपना काम करके निकल ले...” 

मैने खिड़की से झाँक कर देखा कि हाँयह वही आदमी थाजिसने देसी शराब के ठेके में मुझसे कहा था कि 'अरी कमसिन कली,यहाँ की तो नही लगती... किसके घर आई हैथोड़ी हम पर भी महरबान हो जा...'

उसके उजड़ गाँव में मुझ जैसी शहर की लड़की को देख करके वाजिब है की उसका दिल आ गया होगा... पर कहाँ वह डोम और कहाँ मैं शहर की एक जानी मानी सॉफ्टवेर कंपनी की काम करनेवाली एक प्रोफेशनल |

वह काला था,मोटा था और शायद २७ या २८ साल का ही होगालेकिन उसकी तोंद निकल आई थीवह अपनी उम्र के मुक़ाबले ज़्यादा बड़ा दिखता थाउसका सर भी लग भाग गंजा होने को आया था... दिन के उजाले में उसकी टाँट चमक रही थी... कोई भी उसे देख कर शायद यह सोचता की उसकी उम्र कम से कम ४५ साल की होगी |

माई ने उसे बड़ी चालाकी से यकीन दिलाया की मैं उसके घर किसी "जानानीवाली काम" से आई थी और अपना काम निपटा कर चली गई हूँ... उसने दोबारा नही पूछापर मैं यह अच्छी तरह से जानती थी कि वह मुझे दोबारा सिर्फ़ एकबार देखने के लिए ही सही... बेताब हो रहा था |

***

धूपढल चुकी थीशाम होने वाली थी- आसमान में बादल छाए हुए थे इसलिए आज अंधेरा कुछ ज़्यादा ही लग रहा थापर कल की तरह अबतक बारिश शुरू नही हुई थी | कल्लू डोम माई के कहे अनुसार अपना काम ख़तम कर चुका था... वह अपना काम ख़तम करके चला गया |

उसके जाने के करीब पन्द्र्ह या बीस मिनट बाद मैं शरमाई और सिमटी हुई सी अपने हाथों से अपना नंगा बदन ढकने की व्यर्थ कोशिश करती हुई धीरे धीरे कमरे से बाहर आई |

मुझे बड़ा अज़ीब सा लग रहा था कि बड़ी होने के बाद शायद आज पहली बार मैं बिल्कुल नंगी होकर एक खुले आँगन में कदम रख रही हूँ 

"मेरी अच्छी बच्ची"माई ने बड़े लाड से कहा, "चल थोड़ा सा पी लेतेरा जी हल्का हो जाएगा उसके बाद बिटिया तुझे रसोई संभालनी है... देख शाम होने को आई आयार हमने कुछ भी नही खाया"यह कह कर माई ने अपना जूठा गिलास मेरी तरफ बढ़ा दिया 

मैंने उसी गिलास से एक बड़ा घूँट लिया और पी कर खांसने लगी, "माई बोलीधीरे बेटी -धीरे... यह देसी दारू है... अगर जैसा मैं कहूँ वैसा तू करती रही तो सब कुछ तेरे रंग चढ़ जाएगा"

मैंने पूछा,"माई आप जिसका ज़िक्र करतीं हैं, - 'वह'.. आख़िर यह 'वहहै कौन?"

" 'वहएक निशचार है- बहुत ही ताकतवर शैतानी आत्मा है 'वहमैं उसी को खुश करने के लिए काफ़ी दिनों से साधना कर रही हूँमैं तेरी अछूती जवानी 'उसको'ही तो भेंट चढ़ाउंगी... वरना तेरे भाग्य में तो कुछ दीनो बाद ही बलात्कार और बदनामी लिखी हुई है |

"क्या मतलब?"

अच्छा एक बात बता, तू स्टेशन में किससे बात कर रही थी?", माई ने मेरी बात को बीच में ही टोक दिया |

"अपने बॉस से... आपको घर छोड़ने के लिए छुट्टी माँग रही थी..."फिर मैने मन ही मन सोचा कि कहाँ तो मैं एक लाचार औरत की मदद करना चाहती थी और एक गाँव देखना चाहती थी लेकिन अब मैं खुद ही लाचार और क़ैद हो चुकी हूँ |

"उसने तुझे एक दिन शनिवार को दफ़्तर में आने को कहा है ना?"

"हाँ..."

"शनिवार को तेरे दफ़्तर में कितने लोग काम करते हैं?" , माई को तो सब कुछ मालूम है |

मैं चुप रही... क्योंकि शनिवार को शायद ही कोई ऑफीस में होता था...

"पता चल गया ना...अगर तेरे बॉस ने तेरी इज़्ज़त लूट लीतो तू उसका क्या बिगाड़ लेगी?"

मुझे याद आया की जब मैं छोटी ही थीतो एक पंडित जी हमारे घर आए हुए थेउन्होंने मेरी कुंडली देख कर कहा था की बीस - एक्कीस साल की उम्र में मेरी ज़िंदगी में एक बड़ा हादसा लिखा हुआ हैमैं जानती थी कि मेरे बॉस की नज़रें मुझ पर हैं लेकिन मैं सपने में भी नही सोचा था कि उसके इरादे इतने गिरे हुए थे... माई की बातों का कोई जवाब नही था |

“इस उम्र में अपना कौमार्य खोना तो तेरे भाग्य में लिखा है बेटी... लेकिन इसमें कुछ बदलाव आ सकता है... मैं जानती हूँ कि तुझे पा कर 'वहबड़ा खुश होगा,और मेरा यकीन मान... 'वहतुझे भोगने के बाद कुछ ना कुछ दे कर जाएगा... तू दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करेगीतेरा बदन हमेशा सोने से लदा हुआ रहेगा... तुझे कभी किसी मर्द की गुलामी नही करनी होगी...तेरे बच्चे आसमान को छुएँगे... तेरे लंबे घने रेशमी खुले बालों की तरह... तेरे भाग (भाग्य) खुल जाएँगे... बस पहली बार तुझे थोड़ी तकलीफ़ होगी... पर तुझे सिर्फ़ अपनी टाँगो क फैला कर लेटे रहना होगा बेटी... तू एक लड़की हैएक ना एक दिन तो तुझे किसी ना किसी से चूदना पड़ेगा... इस लिए एक अच्छी बच्ची की तरह माई का कहा मान |”

मैं चुपचाप बैठी यह सब सुन रही थी | 

अब तक मेरे साथ जो कुछ भी हुआ उससे मुझे माई की तांत्रिक शक्तियों का अंदाज़ा लग चुका था... मैने अपने हाथ में थामे हुए गिलास से शराब की एक और घूँट पी और बोली, "माई, आप जैसा कहेंगी मैं वैसा ही करूँगी.."

“अच्छाकुछ नियम और क़ानूनो का पालन करना होगा मेरी बच्ची”, फिर माई बोली, "यह लो कर लो बातमैं लड़की चुरा कर लाईऔर वह मेरे बगल में अभी नंगी बैठी हुई है और मैने उससे उसका नाम भी नही पूछा.. अच्छा बेटीतेरा नाम क्या है?"

"मेरा नाम संध्या हैमाई |"

माई ने मुझे गले से लगा लिया और बोली, "काश तू मुझे कुछ साल पहले मिली होती...” 

माई मुझे सीने से लगा करके मुझे दुलार रही थी फिर ना जाने क्यों वह थोड़ा नाराज़ सी होकर बोली,“हरामज़ादाकल्लू फिर वापस आ रहा है...जा मेरी बच्ची,अंदर जा... तू नंगी है... मैं नही चाहती कि वह भेंट चढ़ने से पहले तुझे नंगा देखे...”

मैं अंदर चली गई |

कुछ मिनट बाद ही कल्लू की आवाज़ घर के दरवाज़े के पास से आई, "माई- ओ माई!"

"क्या बात हैकल्लू?"

"हे हे हे लगता है मैं अपना हंसिया यहीं भूल गया..."कल्लू माई के घर का काम करने के लिए फावड़ाहंसिया आदि इत्यादि अपने साथ ले कर आया था, "वह देखो वह तो रहा पेड़ के पास..."

"कल्लू! ज़रा हंसिया दिखना..."माई बोली |

कल्लू से हंसिया ले कर माई ना जाने उसमे क्या परखने लगीफिर वह बोली, "यह तो काफ़ी बड़ा और भारी है..."

"हाँ माईऔर बहुत धार है इसमें... चाहो तो एक ही वार में तुम किसी की गर्दन भी उड़ा सकती हो..."

"जानती हूँतू एक काम कर इसे फिलहाल यहीं छोड़ कर जाअगर तुझे ज़रूरत पड़ी तो ले जाना..."

"ठीक है माई! पर तुम इसका करोगी क्या?"

"क्या जाने यह मेरे कुछ काम आ जाए....

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