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Wednesday, September 03, 2014

धुमिया -8


आधीरात होने को आई थी, बारिश रुक चुकी थी माई मेरे बालों को समेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ कर बड़े जतन के साथ मुझे कुँए के पास ले गई और उसने मुझे दोबारा नहलाया लेकिन इसबार उसने मेरे बाल नही सुखाए और बदन भी नही पोछा | कल्लू जो शमशान की राख और मिट्टी ले कर आया था, उसमे से थोड़ा सा अपनी मुठ्ठी में ले कर उसने मेरे माथे पर, स्तानो पर और यौनांग पर मल दिया | फिर उसने मुझे थोड़ी और शराब पिलाई - मैं तो पहले से ही नशे में लड़खड़ा रही थी; लेकिन जैसा जैसा माई ने कहा मैं करती गई |


माई के कहे अनुसार मैंने रसोई से लकड़िया ला कर कल्लू के खोदे हुए गढ्ढे में डाला और फिर आग जलाई... माई न ज़ाने क्या मंत्र वंत्र बड़बड़ाती हुई अपनी माला जपने लगी और उनके इशारे पर मैं आग में घी डालती रही |

माई उस शैतानी आत्मा को खुश करने की कोशिश कर रही थी... मेरे पास माई का कहा मानने के अलावा और कोई चारा नही था |

माई की तांत्रिक क्रिया ख़तम होने के बाद उसने मुझे कुँए के पास ले जा कर फिर से नहलाया और मेरा गमछे से मेरे बाल और बदन को सूखाया फिर मुझे खाना खिलाने के बाद वह मुझसे लिपट कर सो गई |

यह सिलसिला अगले तीन दिन तक चलता रहालेकिन हर सुबह मेरी नींद दूर से आ रही मंदिर में चल रही आरती की आवाज़ से खुल जाती और मैं चुपके चुपके घर से निकल कर तालाब में डुबकी लगा कर सिर्फ़ एक ही प्रार्थना करती-"हे मा कालीमेरी रक्षा करो!"

***

आज अमावस है सुबह काफ़ी बारिश हुई थी बादल छाए हुए थेचारों तरफ़ मानो एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था और बादलों की वजह से एक धुँआसा सा छाया हुआ था हर रोज़ की तरह मैं चुपके चुपके तालाब में डुबकी लगा कर अपनी प्रार्थना कर आई थी |बूंदा बाँदी चल रही थीमैने देखा की आँगन की नाली में कुछ फँस गया हैइसलिए आँगन में पानी जाम रहा था और धीरे धीरे कल्लू के द्वारा माई के लिए खोदे हुए अग्नि कुंड की तरफ बढ़ रहा था मैंने झाड़ू ले कर नाली की रुकावट को दूर कियाजमा हुआ पानी तेज़ी से निकल ने लगा |

बारिशथोड़ी तेज़ हो गई और तबतक माई भी उठ गई थी मुझे अपने बगल में ना पाकर शायद थोड़ा परेशान सी हो गई थी- आज वह जैसे और भी कमज़ोर लग रही थी- मेरा अंदाज़ा सही थातांत्रिक क्रियाओं का कुछ असर उसके शरीर पर पड़ रहा था |

क्या कर रही है मेरी बच्ची?”,माई ने पूछा

“आँगन में पानी जाम रहा थामाई... और हवन कुंड की तरफ आ रहा थाइस लिए मैने नाली साफ करके झाड़ू लगा रही थी...

“हाय- हायमुझे उठा तो दिया होतामैं तुझे अपने हाथों से थोड़ा शराब पीला देती- तेरे बदन में गर्मी तो रहतीआज तू भेंट चढ़ेगी बेटीऔर तू नंगे बदनखुले बालों में बारिश में भीगती हुई आँगन में झाड़ू लगा रही है?...बीमार पड़ गई तो?

“आजकल आपकी तबीयत भी तो कुछ ढीली लग रही है माईइसलिए मैने सोचा की नाली साफ कर दूंवरना सारे आँगन में पानी पानी हो जाएगा...

“हाँतूने सही कहा बिटिया मेरी तबीयत थोड़ी ढीली है,पर आज रात के बाद मैं बिल्कुल ठीक हो जाउंगी... मेरी शक्तियाँ और बढ़ जाएँगीपर बेटी यहसब तो तेरी वजह से ही तो होगा ना... आज तू भेंट चढ़ेगी- रात भर चोदेगा 'वहतुझे...उससे पहले अगर तू बीमार पड़ गई तो?

मैं चुपचाप सर झुका कर हाथ में झाड़ू ले कर खड़ी बारिश में भीगती रही |

“अरी लड़कीखड़ी खड़ी मेरा मूह क्या देख रही हैचल चल अंदर आ... थोड़ा पी कर अपना बदन गरम कर लेअगर सारा दिन तू बारिश में भीगेगी तो भी तुझे ठंड नही लगेगी.. उसके बाद फिर कुँए से पानी भर लेनाचूल्हा चौका भी तो संभालना है तुझे... उसके बाद तेरे और भीकाम हैं आज... और देख तेरे बदन पर तो कीचड़ के छींटे भी लग गये हैं... हाय रे दैया शराब पिलाने के बाद मैं तुझे नहला भीदूँगी... दैया रे दैया घर में जवान लड़की सीने में पथ्थर की सील ती तरह होती हैअब चल अंदर आ छोकरी... जल्दी से गिलास और शराब की बोतल लेकरआ... थोड़ी देर में कल्लू भी आता होगाशराब और माँस ले कर... मैं नही चाहती कि भेंट चढ़ने से पहले वह तुझे नंगी देखे...”

मेरे मन में एक ही बात गूँज रही थी - हे मा कालीमेरी रक्षा करो |

पता नही क्यों आज मई ने मुझे ज़रूरत से ज़्यादा ही शराब पिलाईउसके बाद उसने मेरे बालों को समेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ कर बड़े जतन के साथ मुझे कुँए के पास ले गई और उसने मुझे नहलाया... लेकिन आज थोड़ी देर हो गई थी- कल्लू "माई ओमाई" आवाज़ देता हुआआँगन में घुस आया और मुझे नंगा नहाते हुए देख कर ठिठक सा गया |

माई गुस्से से बोली,"हरामज़ादेतेरे को भीअभी आना था क्या?"

कल्लू आँखे फाड़ फाड़ कर मुझे घूर रहा था 

माई बोली, "देख क्या रहा हैपहले लड़की नही देखी क्या?"

कल्लू डरते डरते बोला,"माईमैने इसी लड़की को तो बाज़ार में देखा था - पर इसकी चुत में तो बाल ही नही हैं..."

"हाँमादारचोदमुझे मालूम है- तुझे हमेशा लड़की की चुत ही दिखेगी... अब आँखे फाड़ फाड़ कर मत देखरख दे सारा समान बारमदे में और दफ़ा हो यहाँ से... और खबरदार मेरी लड़की की ओर दुबाराआँख उठा कर भी देखा तो... यह बेटी है मेरी ...."

कल्लू को मानो साँप सूंघ गया होउसने चुपचाप वैसा ही किया जैसा माई ने कहा |

फिर माई बोली, “और जैसा मैने कहा रात को वैसा ही करना वरना तेरे ही हँसिए से मैं तेरा गर्दन उड़ा दूँगी...

कल्लू के जाने के बाद माई ने बड़े लाड प्यार के साथ मेरा बदन पोंछ कर मेरे बाल सुखाए और मेरे बालों में कंघी की और कहने लगी, "मैं सोच रही थीआज रात भेंट चढ़ने के बाद तू तो चली जाएगी... तू एक काम क्यों नही करतीतू मेरे पास ही क्यों नही रह जाती... बेटी बना कर रखूँगी तुझे मैं..."

“नही माई, मुझे जाना ही होगा...”, मैने कहा |

माईथोड़ा मुस्कुरई और फिर उसने मुझे थोड़ी और शराब पिलाई |

फिर वह बोली, "बस बिटियाअब तो सिर्फ़ रात का ही इंतेज़ार है..."

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